Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 203
________________ हुई। उसके बाद सन् 1944 तक उनकी 2 दर्जन से भी अधिक पुस्तकें जनता के बीच गयी और उन्हें व्यापक प्रशंसा मिली। इन पुस्तकों में कहानी संग्रह : 'क्रांतिकारी की माँ, दुर्ग द्वार, दो हृदय, उस दिन, आँसू, मानवी', नाटक : ‘भाग्य, अत्याचार, गरीब, बलि, जो चढ़ी नहीं, आहुति', कविता संग्रह : 'तरुण गीत, झनकार, उपवन' आदि ने भारतीय जनता में अपूर्व उत्साह का संचार किया। भगवत्स्वरूप जैन के कृतित्व की सफलता का यह प्रमाण है कि उनकी कई रचनाओं का अनुवाद मराठी भाषा में करके उनका प्रकाशन किया गया। उनके द्वारा विरचित अनेक गीत भी बहुत लोकप्रिय हुए और उनका रिकॉर्ड बनाकर जगह-जगह वितरित किया गया। आगरा का प्रमुख साप्ताहिक पत्र 'सैनिक' भी बराबर उनकी देशभक्ति से ओत-प्रोत रचनाएँ प्रकाशित करता था। देश भक्ति की कविताओं से भगवत्स्वरूप जैन निरन्तर देशवासियों को उनके अधिकारों के विषय में सचेत करते रहे तथा ब्रिटिश सरकार की आलोचना करते हुए भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए अपनी लेखनी चलाते रहे। दुर्भाग्यवश अति अल्प आयु में 5 दिसम्बर, 1944 को उनका निधन हो गया। आनन्दप्रकाश जैन 15 अगस्त 1927 को मुजफ्फरनगर के शाहपुर कस्बे में जन्मे श्री जैन ने भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया और डेढ़ वर्ष की कठिन कारावास की सजा पायी।। जेल यात्रा से पूर्व ही श्री जैन लेखन के क्षेत्र में कदम रख चुके थे। 1941 में उनकी पहली कहानी 'जीवन नैया' प्रकाशित हुई। उसके बाद उन्होंने निरन्तर साहित्य रचना करके देश के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर अपनी छाप छोड़ी। ___ आनन्दप्रकाश जैन एक महान लेखक थे। उनके जीवन पर शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर (महाराष्ट्र) से सुश्री सुजाता प्रकाशचन्द्र मेहता ने 'आनन्द प्रकाश जैन : व्यक्तित्व तथा कृतित्व' विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इस शोध प्रबंध में उनके स्वतंत्रता सेनानी जीवन से लेकर साहित्यकार जीवन की ऊँचाइयों तक का वर्णन किया गया है। इस प्रकार आनन्दप्रकाश जैन ने देश के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सामाजिक कुरीतियों को दूर हटाने में जैन समाज का योगदान जैन धर्म के पाँच महाव्रतों में पहला महाव्रत ‘अहिंसा' है। 'अहिंसा' के सिद्धान्त को जैन अनुयायी सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने अहिंसा को ही अपना अस्त्र बनाया और उसी के आधार पर हमारा देश स्वतंत्र हुआ। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 201

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