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कि यह आन्दोलन सत्यतापूर्ण आन्दोलन है, अब यह सुलग चुका है। वह तब तक नहीं बुझ सकता, जब तक कि अन्याय, अत्याचार एवं पराधीनता के किले को भस्म न कर देगा। भारतीयों को पुर्नजन्म पर विश्वास है, इसलिए उन्हें मरने का डर नहीं है। सरकार को अपनी जितनी शक्ति अजमाना हो अजमा सकती है। एक अन्य अंक में 'जैन मित्र' ने लिखा कि महात्मा गाँधी का सत्याग्रह संग्राम जोरों पर चल रहा है। इसकी विशेषता यह है कि इस संग्राम का एकमात्र अमोध अस्त्र जैन धर्म का सिद्धान्त 'अहिंसा' धर्म है। बस यह संग्राम क्या है? अहिंसा धर्म की अपूर्व प्रभावना है। इसलिए आज जैनी बड़ी संख्या में इस अहिंसा संग्राम में भाग ले रहे हैं। पत्र ने आगे लिखा-जो जैन सेठ जिस्मानी (शारीरिक) दिक्कतें उठाने को तैयार नहीं हैं, उन्हें चाहिए कि वे स्वदेशी वस्त्रों का प्रचार करायें और गिरफ्तार हुए जैन स्वयंसेवकों के कुटम्बीजनों की सेवा करें।
_ 'जैन मित्र' के माध्यम से ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद समय-समय पर जनता से अपीलें करते रहते थे। उनके द्वारा की गई एक अपील थी-'जब देश में हाहाकार फैला है और महान् अहिंसात्मक युद्ध छिड़ रहा है और बड़े-बड़े नेता जेल में घोर कष्ट भोग रहे हैं, तब यह शोभता नहीं है कि हम दावतें करें व दावतें उड़ावें। हम अपने भाइयों से कहेंगे कि वे हाल में कोई भी जीमन कहीं न करे। दशलाक्षणी व रत्नत्रय व्रत (जैन समाज के त्यौहार) के उपलक्ष्य में जो जीमन करना हो, तो उनको बंद रखें और जो पैसा एकत्रित हो, उसे देश सेवा में दें।'
___आगरा के महेन्द्र जैन द्वारा सम्पादित 'वीर संदेश' (मासिक पत्रिका) भारतवासियों में देश प्रेम की भावना जगाने में साधन बनी। इस पत्रिका में देश के राष्ट्रीय नेताओं के चित्र एवं समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते थे। आगरा के कपूरचंद जैन ने विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से देशसेवा में भाग लिया। प्रसिद्ध जैन साप्ताहिक पत्र 'जैन संदेश' के जन्मदाता कपूरचन्द जैन ने 'जैन संदेश' के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान सक्रिय होकर कार्य किया। पत्र में प्रकाशित सम्पादकीय लेख विशेष रूप से पढ़े जाते थे। जैन संदेश ने देश के स्वतंत्र होने से पूर्व 23 जनवरी 1947 को अपने एक 100 पृष्ठीय राष्ट्रीय अंक का प्रकाशन किया, जिसमें जैन समाज द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन में की गयी भागीदारी का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया।
उत्तरप्रदेश जैन समाज के प्रतिभावान लेखकों ने भी अपनी कलम के माध्यम से स्वतंत्रता आन्दोलन में अहम् भूमिका निभाई। इन लेखकों की रचनाएँ अंग्रेजी सरकार को ललकारती थी और उनमें साम्राज्यवादी सरकार का चुनौतीपूर्ण विरोध किया जाता था। इन लेखकों ने निबन्ध, कविता, कहानी, गद्य काव्य, उपन्यास आदि साहित्य के सभी अंगों में देशभक्ति से ओत-प्रोत लेखन कार्य किया। उत्तर प्रदेश
निष्कर्ष :: 217