Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 220
________________ निवासी इन लेखकों में ऋषभचरण जैन, जैनेन्द्रकुमार जैन, यशपाल जैन, अक्षयकुमार जैन, शांतिस्वरूप जैन 'कुसुम', भगवत्स्वरूप जैन, आनन्दप्रकाश जैन प्रमुख थे। इन लेखकों के लेखन में भारतवासियों की पीड़ा और उनका स्वाभिमान झलकता था। एक कहानी में जैनेन्दकुमार ने 'पुरे के चौधरी' नामक पात्र के माध्यम से अंग्रेजी कोर्ट के न्यायाधीश को कहलवाया-मैं तुम लोगों को यहाँ नहीं चाहता। तुम लोगों का राज मैं नहीं मानता। यह तुम्हारी मजिस्ट्रेटी भी मुझे स्वीकार नहीं है। तुम अंग्रेज हो, अपने देश में रहो। हम हिन्दुस्तानी हैं, हम यहाँ रह रहे हैं। तुम्हारे यहाँ जगह नहीं है, कम है-अच्छी बात है, तो फिर यहाँ रहो, पर आदमियों की तरह से रहो। यह तुम्हारी सिर पर चढ़ने की आदत कैसी है? सो ही हम नहीं चाहते, ऐसे जब तक रहोगे, तब तक हम तुम्हारे खिलाफ रहेंगे। भाई बनकर रहोगे। बराबर-बराबर के गोरे पन की ऐंठ में न रहोगे तो हम भी तुमसे ठीक व्यवहार करेंगे और फिर देखें कौन तुम्हारा बाल भी छू सकता है। परन्तु यदि ऐसे नहीं बनोगे, तो दम में जब तक दम है, तब तक हम तुम्हारे दुश्मन रहेंगे। यह वाक्यांश जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखे गये ‘फाँसी' कथा संग्रह में संकलित है, जो 1933 में प्रकाशित हुआ था। इस प्रकार जैन लेखकों ने अपनी कलम के माध्यम से भी स्वतंत्रता आन्दोलन का बिगुल बजाया। उत्तरप्रदेश के जैन समाज ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान समाज में फैली विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए भी काफी प्रयत्न किया। आगरा में स्थापित श्री जीवदया प्रचारिणी सभा के सदस्यों ने पूरे प्रदेश में पशुओं की बलियों को रोकने हेतु अपना बड़ा दल बनाकर कार्य किया। सभा के प्रयत्नों से पेंडत (जखैया आगरा), विन्देसरी देवी (विंध्यांचल), जीवनमाता (सीकर), मौजा चौरसिया (फर्रुखाबाद), स्टेट ‘एका' (मैनपुरी) आदि स्थानों पर होने वाली पशुबलि को रोकने हेतु पूर्ण प्रयत्न किया गया और इस कार्य में सभा को काफी सफलता भी प्राप्त हुई। काशी के ‘अहिंसा प्रचारक संघ' ने भी पशुबलि रोकने हेतु प्रयास किये। देवबन्द के बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने अपने कस्बे के माँ काली मंदिर पर दी जाने वाली बकरों की बलि को बंद कर दिया तथा वृद्ध विवाह और बाल विवाह का भी खुलकर विरोध किया। जैन समाज ने आजाद हिन्द फौज में भी अपना योगदान दिया। कर्नल डॉ. राजमल जैन कासलीवाल ने आजाद हिन्द फौज में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा के निदेशक एवं नेताजी के निजी चिकित्सक के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किया। जैन संत गणेशप्रसाद वर्णी ने एक सभा में आजाद हिन्द फौज की सहायतार्थ अपनी चादर को समर्पित कर दिया। जैन संत की इस चादर से प्राप्त धनराशि को आजाद हिन्द फौज की सहायता हेतु भेजा गया। इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के विभिन्न उपक्रमों में उत्तर प्रदेश के जैन समाज ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 218 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान

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