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वृन्दावन (मथुरा) में जन्मी ब्रह्मचारिणी चन्दाबाई का पूरा जीवन भी देश सेवा, परोपकार, शिक्षा का प्रचार-प्रसार आदि कार्यों को करते हुए व्यतीत हुआ। उनका जन्म एक वैष्णव अग्रवाल परिवार में हुआ था। 11 वर्ष की अवस्था में चन्दाबाई का विवाह आरा (बिहार) के सुप्रसिद्ध जैन रईस धर्मकुमार जैन के साथ हुआ। परन्तु 1 वर्ष बाद ही वह विधवा हो गई। असहयोग आन्दोलन के दिनों में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए 1921 में आरा में जैन
बाला विश्राम की
अब्र. चन्दाबाई स्थापना की, जिसमें देश सेवा का पाठ पढ़ाया जाता था।
जैन आश्रम का महत्व बहुत अधिक था। जिस प्रकार पूज्य मालवीय जी महाराज का हिन्दू विश्वविद्यालय, गुरूदेव का शांति निकेतन, शिव प्रसाद गुप्त का काशी विद्यापीठ, गाँधी जी का सेवाश्रम, मीरा बहन का 'गोलोक', रमण महर्षि
का तिरूवन मलय आश्रम और योगी अरविन्द का धर्मकुमार जैन
पाण्डिचेरी आश्रम प्रसिद्ध हुआ, उसी प्रकार श्री
चन्दाबाई का जैन बाला विश्राम ने भी अपार ख्याति प्राप्त की।
महात्मा गाँधी ने आश्रम के बारे में कहा था-'पण्डिता चन्दाबाई द्वारा स्थापित 'वनिता विश्राम' देखकर मुझे बड़ा आनन्द हुआ और मकान की शांति देखकर आनन्द हुआ।4 गाँधी जी जैन बाला विश्राम में पधारते रहते थे। गाँधी जी के एक बार के आश्रम आगमन की खबर थी-'28 जनवरी को महात्मा गाँधी जैन बाला विश्राम आरा में सपत्नीक पधारे। आश्रम की छात्राओं ने गाँधी जी का भव्य स्वागत किया तथा दो बालिकाओं ने राष्ट्रीय भजन गाये। विश्राम की कोषाध्यक्षा ब्रजबाला
देवी ने आश्रम की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। गाँधी जी के सम्बोधन के बाद उन्हें विश्राम की छात्राओं का शिल्प एवं चर्खे आदि का काम दिखलाया गया, जिससे प्रसन्न होकर महात्मा जी ने अपनी शिष्या इंग्लैण्ड निवासी मीराबाई जी को विश्राम की छात्राओं को चर्खा सिखाने के लिए 3-4 माह के लिए भेजने की इच्छा प्रकट की। पश्चात् पंडिता चन्दाबाई जी द्वारा लिखित सभी पुस्तकें खादी के वेष्टन से परिवेष्टित करके महात्मा जी को भेंट की गई। इस प्रकार चंदाबाई जी द्वारा स्थापित आश्रम राष्ट्रीय नेताओं के लिए भी प्रेरणा देने वाला था।
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज
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