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से हमें मिण्टगुमरी जेल भेज दिया गया। अण्डमान में स्थान रिक्त न होने के कारण पंजाब के जीवन पर्यन्त के सजायाफ्ता कैदी यही रखे जाते थे। हमें भी यहाँ एक वर्ष रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
गोयलीय जेलों के कष्टों को झेल रहे थे कि सन् 1931 में गाँधी इरविन समझौता हुआ और प्रायः सभी राजनैतिक बन्दी छोड़ दिये गये, परन्तु उन्हें मुक्त न करके मियाँवाली जेल में भेज दिया गया। इस जेल में और भी राजनैतिक बंदियों को रोका गया था। ‘अनेकान्त' में उन्होंने लिखा है-मियाँवाली जेल में अमर शहीद यतीन्द्रनाथ दास, भगत सिंह और हरि सिंह रह चुके थे। सौभाग्य से उन्हीं बैरकों और कोठरियों में मुझे भी रहने का अवसर मिला।
मियाँवाली जेल में एक घटना घटी, गोयलीय जी का एक साथी जो बंगाली था, अपने साथियों को गुप्त तरीके से पत्र भेजा करता था। एक दिन सी.आई.डी. के संकेत पर वह पत्र पकड़ा गया और जेल में खलबली मच गई। उस समय वह बंगाली और गोयलीय जी दोनों एक ही कोठरी में थे। अतः जेल के अधिकारियों ने गोयलीय जी से छान-बीन करनी प्रारम्भ कर दी। उन्होंने लिखा है- 'पत्र पकड़े जाते ही मुझे फाँसी की 10 नं. कोठरी में इसलिए भेज दिया गया कि मैं घबराकर सब भेद खोल दूँ। इस कोठरी में फाँसी की सजा पानेवाला वही व्यक्ति एक रात रखा जाता था, जिसे प्रातः फाँसी देनी होती थी। 9 कोठरियों में बन्द मृत्यु की सजा पाये हुए बंदियों का करूण क्रन्दन नींद हराम कर देता था। ऐसा मालूम होता था कि मैं श्मशान भूमि में बैठे धूं-धूं जलती चिताओं को देख रहा हूँ।'57 गोयलीय जी को अनेक यातनायें दी गयी, परन्तु उन्होंने कलक्टर तथा जेल सुपरिन्टेन्डेंट को कुछ नहीं बताया। इस प्रकार उन्होंने जेल में तथा जेल के बाहर सदैव देश की स्वतंत्रता हेतु कड़ी तपस्या की। मथुरा के ऋषभब्रह्मचर्य आश्रम के वे गौरव बन गये।
मथुरा के सहपऊ इलाके के रहनेवाले केशवदेव जैन ने लेखक को बताया था कि उस समय सहपऊ में जैन समाज के जितने भी घर थे सभी राष्टीय आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। उनके अनुसार वे बच्चों की मंडलियों में शामिल होकर कांग्रेस का झंडा गली-गली लगाया करते थे। सहपऊ के रामकरण जैन, रिक्खी लाल जैन व उनके पुत्र सुनहरीलाल जैन 'आजाद' आदि अनेक जैन बन्धुओं ने आन्दोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार का डट कर मुकाबला किया। सूचना विभाग उ.प्र. के अनुसार-रामकरण जैन पुत्र बनारसीलाल जैन सहपऊ मथुरा को नमक सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के कारण सन् 1930 में 6 मास का कारावास और 300 रुपये जुर्माना हुआ।
रिक्खीलाल जैन ने भी जेल की यात्रा की। उन पर नमक सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने के कारण सन् 1931 में 6 मास का कारावास और 50 रुपये जुर्माना
92 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान