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सत्याग्रह कर दिया और जेल से तभी छूटे, जब आन्दोलन शांत हो गया।120 सूचना विभाग उ.प्र. के आँकड़ों के अनुसार इस आन्दोलन में सम्मिलित होने के परिणाम स्वरूप श्री जैन ने 18 मास कैद तथा 200 रुपये जुर्माने की सजा भोगी। वे सन् 1930 के सत्याग्रह के पश्चात् भी प्रत्येक आन्दोलन में भाग लेते रहे और जेल जाते रहे ।।
का अजितप्रसाद जैन की धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीदेवी जैन ने भी आजादी के आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया तथा जेल यात्रा भी की। उनके विषय में 'प्रभाकर' जी ने लिखा है-पिछले वर्षों में लक्ष्मीदेवी जैन सदा कांग्रेस के कामों में भाग लेती रहीं और प्रमाणित कांग्रेसी जेल यात्री भी हैं। वैसे उनकी ममता अनगिनत कार्यकर्ताओं को जो बल देती है, स्फुरणा और सांत्वना प्रदान करती है, वह
अजितप्रसाद जैन एवं लक्मीदेवी जैन किसी की कई बार की भी जेल यात्रा से अधिक पवित्र है। उनका जीवन असल में भगवान् महावीर की साधना और महात्मा गाँधी की सहनवृत्ति का आलोक दीप है। उनके साथ उनकी कुछ मास की पुत्री टोई भी जेल में रही।122
_सहारनपुर के सभी इलाकों में आजादी का बिगुल बज रहा था। तहसील देवबन्द में 12.04.1930 को कांग्रेस की बड़ी सभा हुई, जिसके विषय में देवबन्द के हाकिम इलाका बाबूराम यादव ने घोषणा की थी, 'जो देवबन्द में जलसा करेगा, उसे हण्टर से पिटवाऊँगा।' यह सूचना पाकर अजित प्रसाद जैन, ललता प्रसाद अख्तर आदि देवबन्द गये और जलसे को सफल बनाया, परन्तु सभा के बाद अजित प्रसाद जैन गिरफ्तार कर लिये गये।123 इसी प्रकार देवबन्द में 2 से 4 सितम्बर 1930 को एक बैठक हुई, जिसमें कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', मामचन्द जैन सक्रिय रहे और उसके बाद गिरफ्तार कर लिये गये। 24 देवबन्द एक छोटा स्थान होने के बाद भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहा। यहाँ के मामचन्द जैन ने इस आन्दोलन में अपना सक्रिय योगदान दिया। उनके विषय में प्रभाकर जी ने लिखा है-भाई मामचन्द जैन 1930 में अपने गम्भीर नारों और मीठे ऐलानों के साथ कांग्रेस में आये। शीघ्र ही उन्हें जिले के नेताओं का स्नेह मिल गया और सरकार का प्यार भी। एक दिन हथकड़ियाँ पहने वे सहारनपुर जेल पहुँच गये।।25
रामपुर मनिहारन (सहारनपुर) में हुलासचन्द्र जैन ने इस आन्दोलन में सक्रिय
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 107