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युद्ध के बाद स्वतंत्रता देने का वचन देने के लिए भी तैयार नहीं हुई। केन्द्रीय असेम्बली में देश के प्रतिनिधियों के जो जोरदार भाषण हुए उनसे सरकार को हवा का रुख परखना चाहिए था, परन्तु ऐसा लगता है कि बिना शक्ति आजमाये सरकार का दिल नहीं पसीजेगा। अभी तो जेल खाने भरे जायेंगे। उसके बाद सुलह की बातचीत शुरू होगी। परिणाम क्या होता है? यह तो समय ही बतलायेगा, किन्तु ऐसे विकट समय में भी सरकार अपनी हठ नहीं छोड़ना चाहती, यह देखकर अचरज भी होता है और खेद भी।65
जैन संदेश की ये निर्भीक टिप्पणियाँ उसे देशभक्त अखबार सिद्ध करती है। पत्र ने संयुक्त प्रान्त के समाचारों के अतिरिक्त अन्य प्रान्तों के सत्याग्रह समाचारों को भी स्थान दिया। कुछ समाचारों पर नजर डालिये। पहला समाचार देखिये-रावलपिण्डी में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री श्री जोगेन्द्रलाल जैन ने सत्याग्रह किया और गिरफ्तार कर लिये गये। सत्याग्रह के समय लगभग तीस हजार मनुष्यों की भीड़ थी। भीड़ में से कुछ मनुष्यों ने पुलिस वालों पर ईंट, पत्थर फेंके, जिससे लगभग 16 कांस्टेबल घायल हो गये। _ 'जैन संदेश' का दूसरा समाचार था-सिवनी जैन समाज के सुप्रसिद्ध वयोवृद्ध नेता गुलाबचन्द जैन आज करीब 24 दिन से ग्रामों में सत्याग्रह करते हुए जबलपुर की ओर पहुंच रहे हैं। उनकी उम्र करीब 50 वर्ष है, परन्तु वे अपने शरीर की तनिक भी परवाह न करके सच्ची लगन के साथ देशसेवा में चले जा रहे हैं। एक अन्य समाचार था, शीर्षक 'सत्याग्रह आन्दोलन में जैन', तारीख 13 जनवरी, 1941 के शाम 4 बजे कटनी तहसील (मध्य प्रदेश) के प्रमुख कांग्रेसी नेता म्यूनिसिपल कमिश्नर सिंघई कालूराम जैन महात्मा गाँधी के आदेशानुसार सत्याग्रह करेंगे तथा 15 जनवरी को वीरचन्द जैन पहरूवा मौजे (स्थान का नाम) में सत्याग्रह करेंगे। इस अहिंसात्मक आन्दोलन में हर एक जैन को अपनी देश भक्ति का परिचय देना चाहिए। _ 'जैन संदेश' इसी प्रकार निरंतर जैन समाज को राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने को प्रेरित करता रहा तथा जो जैन बन्धु आन्दोलन में सक्रिय भाग ले रहे थे। उन्हें यह पत्र प्रोत्साहन देता रहा। भारत छोड़ो आन्दोलन में भी इस पत्र की भूमिका प्रशंसनीय रही।
आजादी मिलने से 7 माह पूर्व जैन संदेश के 100 पृष्ठीय राष्ट्रीय अंक का प्रकाशन किया गया। इस राष्ट्रीय अंक के मुख पृष्ठ पर 'स्वाधीनता की प्रतिज्ञा' शीर्षक से लिखा गया लेख देशभक्ति के भावों से भरा हुआ था। पत्र ने लिखा-हमारा विश्वास है कि अन्य देशों के निवासियों की तरह भारतीयों का भी यह अपरिहार्य अधिकार है कि वह स्वतंत्रता प्राप्त करें, अपने परिश्रम का फल स्वतः उपभोग करें, ताकि उन्हें अपनी उन्नति का पूर्ण अवसर मिल सके। हमारा यह भी विश्वास है कि
184 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान