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कुरीतियों में जकड़े हुए थे। ऋषभचरण जैन ने इन परिस्थितियों में अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से देश को जगाने का क्रांतिकारी कार्य किया।
__ऋषभचरण जैन द्वारा लिखित 'दिल्ली का कलंक, दुराचार के अड्डे, चम्पाकली, तीन इक्के, वेश्या पुत्र, बुर्केवाली, मयखाना, मन्दिर दीप, जनानी सवारियाँ आदि कृतियाँ बहुचर्चित हुई। उन्होंने गदर, हड़ताल आदि कृतियों के माध्यम से अंग्रेजी शासन को ललकारा। सरकार ने उनकी इन कृतियों को जब्त कर लिया। हड़ताल नामक कहानी संग्रह को 1931 में प्रकाशित होते ही प्रतिबंधित कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 2 महीने की सजा दी, परन्तु श्री जैन लेखन कार्य करने हेतु जुर्माना भरकर जेल से वापस आ गये।
ऋषभचरण जैन ने अपनी कृति 'हड़ताल' की पहली कहानी में महान क्रांतिकारी भगत सिंह का वर्णन करते हुए असेम्बली बम काण्ड का चित्रण किया। उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा बनाये गये विभिन्न काननों पर भी कडा कटाक्ष करते हुए लिखा-वह पार्लियामेंट का छिलका है न असेंबली, उसमें फेंका भगत सिंह ने बम। जवान बहादुर था, तर्रार था, शेर दिल था, बस, पकड़ मंगाया। शिनाख्त में देर क्या थी और अदालत अपनी, अपने बाप की। जब अदालत का पहिया भी कर्ण के रथ की तरह फँसा अदालत में, तो झट वायसराय साहब ने ट्रिब्यूनल की मोटर भेज दी। या मुलाहिजे में बेचारों से मंगवा ली गई या कहें, अच्छा खासा कोर्टमार्शल हुआ।
लेखक ने आगे लिखा कि सरकार ने सांडर्स हत्याकाण्ड में 23 मार्च 1931 को शाम के सात बजे भगत सिंह, सुखदेव और शिवराम को फाँसी पर लटका दिया। तीनों वीरों के विषय में उन्होंने लिखा-कम से कम ये तीनों दूसरा जन्म लेने को व्याकुल थे? कालेपानी में, या जेल में सड़कर तो उनका जीवन व्यर्थ हो जाता और इतने, दूसरा जन्म लेकर वे दोबारा देशहित करते, इतने उन्हें यही सब तरह के कष्ट उठाने पड़ते।
महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज सरकार से किये गये समझौते से लेखक प्रसन्न नहीं हैं, वे लिखते हैं कि गाँधी जी के प्रयासों के बाद भी सरकार ने इन तीनों नौजवानों को फाँसी दे दी, इसका मतलब यह है कि सरकार गाँधी जी को कुछ नहीं समझती और उनके माध्यम से अपना कार्य सिद्ध कर रही है। उन्होंने सरकार के भावों को इस प्रकार व्यक्त किया-'गाँधी, अजी बका करें गाँधी। पहले अफसर लोग हैं, सरकार हैं, हम हैं या पहले गाँधी। पहले हम हैं, हमारा हित है, हमारे अफसरों का हित है, हमारे देशवासियों का हित है, हमारे नौकरों का हित है, हमारे कुत्ते का हित है, उसके बाद कहीं गाँधी का और उसके साथियों के हित का विचार करने की गुंजाइश निकल सकती है। गाँधी कोई हमारा रिश्तेदार थोड़े ही है, जो उसकी बात सिर आँखों पर रखें, वह तो जनाब, हमारा दुश्मन है, सोलह आने दुश्मन पक्का राजद्रोही। क्या करें!
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 191