Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 199
________________ उसके पैरों में सिर नवा रहे हो, जो तुमसे ऊँचा था, पक्का था और परमात्मा को प्यारा था। कर्नल ने सिर पैरों में नवा दिया। उसके बाद वह अंग्रेज महिला अपने पति के पापों का प्रायश्चित करने के लिए बंगला छोड़कर निकल लेती है। पति के तमाम अनुरोधों को भी वह अनसुना कर देती है। कहानी के अंत में जैनेन्द्र जी ने लिखा-जहाँ चौधरी का शव जला था, वहीं जमुना किनारे कई साल तक एक झोपड़ी रही। कहते हैं, यहाँ एक पगली तपस्विनी रहती थी, जिसका काम कभी हँसना और कभी रोना था। इस हँसने और रोने का कोई क्रम न था। वह किसी से नहीं बोलती थी। यह रंग में इतनी सफेद थी कि लोग उसे यमुना-तीर की संरक्षिका प्रेतात्मा समझकर उससे दूर-दूर रहते थे। तब एक दिन वह झोपड़ी नहीं रही और न वह पगली ही फिर देखी गई। जैनेन्द्र जी ने इस कहानी में जहाँ चौधरी की देशभक्ति का वर्णन किया है, वहीं उस अंग्रेज महिला द्वारा चौधरी के प्रति ज्ञापित कृतज्ञता का भी मार्मिक चित्रण किया है। इस प्रकार की कहानियाँ देशवासियों के हृदय में अपने देश के प्रति समर्पण की भावना जागृत करती थी। जैनेन्द्र कुमार का महात्मा गाँधी से भी निकट सम्पर्क रहा। गाँधीजी के पत्र भी समय-समय पर उन्हें मिलते रहते थे। 10.12.1934 को वर्धा से भेजे पत्र में बापू ने लिखा-भाई जैनेन्द्र कुमार, तुम्हारा खत मिला है। तुम्हारा निर्णय मुझे बहुत प्रिय लगा है। दिल्ली के इर्द-गिर्द की देहात ले लो। वहाँ सह परिवार रहो, तीन घंटे आजीविका के साधन में देते रहो और बाकी समय ग्राम उद्योग में देना। राज प्रकरण उसके साथ नहीं चलेगा। लोगों की सेवा ही सर्ववस्तु है। मैं इस मास के आखिर में दिल्ली आने की आशा रखता हूँ। उस समय मुझे मिलना और कुछ पूछना है, तो पूछना। ___ एक दूसरे पत्र में गाँधी जी ने लिखा-भाई जैनेन्द्रकुमार, 'दो चिड़िया', की प्रथम कहानी तो पढ़ ली। आगे बढ़ ही नहीं सका हूँ। इच्छा तो है ही। मुझको भाषा अच्छी लगी। तुम अपनी छोटी-मोटी बात अवश्य लिखा करो। हरध्यान सिंह जी वहाँ के एजेंट होंगे। उनसे मिलो और एक कोई देहात, इससे बेहतर हैं कि दिल्ली की हरिजन बस्ती, पसंद कर लो और उसे स्वच्छ करो और कराओ। शुद्ध चावल, आटा वगैरह का प्रचार करो। अपने जीवन के लिए तो फेरफार कर ही लिया होगा।' विभिन्न महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त करते हुए जैनेन्द्र जी ने पूरे स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी लेखनी के माध्यम से देश की महती सेवा की। स्वतंत्रता के बाद भी बराबर उनकी कलम लेखन कार्य करती रही, उन्होंने लगभग आठ हजार पृष्ठों में सर्जनात्मक और वैचारिक साहित्य की रचना की, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य में अद्वितीय उदाहरण हैं। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 197

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