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1929 में उन्होंने ‘फाँसी' नामक कथा संग्रह लिखा, जो उसी वर्ष सरस्वती प्रेस बनारस से प्रकाशित हुआ । उसके बाद उनके उपन्यास परख ( 1929), तपोभूमि (1932), सुनीता (1935), त्यागपत्र (1937), कल्याणी ( 1938 ) तथा कथा संग्रह वातायन (1931), दो चिड़ियाँ (1934), नई कहानियाँ (1936), ध्रुवयात्रा ( 1944 ) और ललित निबंध जड़ की बात (1945 ) आदि प्रकाशित हुए ।
न्द्र कुमार ने 1930 में कथाकार प्रेमचन्द और शांतिनिकेतन के संस्थापक रवीन्द्रनाथ ठाकुर से मुलाकात करके उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया। इसी वर्ष उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान, डॉ. अंसारी और डॉ. सैफुद्दीन किचलू के साथ स्वतंत्र आन्दोलन में काम किया । सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जैनेन्द्र जी 22 महीने कारावास में रहे ।'
1936 में महात्मा गाँधी की अध्यक्षता में गठित 'भारतीय साहित्य परिषद्' में जैनेन्द्र जी को संस्थापक सदस्य मनोनीत किया गया। इस परिषद् के अन्य सदस्यों में के. एम. मुंशी तथा प्रेमचन्द प्रमुख थे । 1937 में कांग्रेस द्वारा प्रांतीय सरकारों का गठन किया गया । जैनेन्द्र जी ने इस गठन से अपनी असहमति व्यक्त की और उसी वर्ष 'त्यागपत्र' नामक अपना उपन्यास प्रकाशित किया । इसके प्रकाशन से उन्हें व्यापक प्रशंसा प्राप्त हुई । इसी प्रकार जैनेन्द्र कुमार स्वतंत्रता आन्दोलन को अपने विचारों से प्रभावित करते रहे। उन्हें आधुनिक हिन्दी कहानी साहित्य का तृतीय अध्याय स्वीकार किया गया है। प्रो. केसरी कुमार सिंह ने लिखा है - 'आधुनिक हिन्दी कहानी साहित्य का प्रथम अध्याय प्रेमचन्दजी से आरम्भ होता है, द्वितीय अध्याय प्रसादजी से और तृतीय अध्याय जैनेन्द्रजी से।”
जैनेन्द्र कुमार द्वारा 1929 में लिखित 'फाँसी' कथा संग्रह बहुत लोकप्रिय हुआ। इस कथा संग्रह को लाहौर कांग्रेस के अधिवेशन पर बेचा गया। उसी समय इस पुस्तक का पूरा संस्करण समाप्त हो गया। इस पुस्तक के माध्यम से देश के क्रांतिकारियों का ध्यान जैनेन्द्र कुमार की ओर आकर्षित हुआ तथा सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध बन गये ।
'फाँसी' संग्रह में संकलित एक कहानी 'गदर के बाद' में लेखक ने 1857 की क्रांति के समय का वर्णन किया । इस कहानी में एक कर्नल और उसकी पत्नी का चित्रण किया गया है, जो गदर के समय एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं। कर्नल पत्नी को 'पुरे का चौधरी' अपने घर में शरण देता है । चौधरी स्वयं क्रांतिकारी है और उसकी मंडली ने बहुत से अंग्रेजों को गदर के दौरान स्वाहा किया है, परन्तु चौधरी स्त्रियों की कदर करता है और उस अंग्रेज महिला को अपने घर में कोई कष्ट नहीं होने देता ।
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दुर्भाग्यवश यह क्रांति सफल नहीं हो पायी और अंग्रेज फिर से दिल्ली की
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान :: 195