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ही वह तिरंगा नीचे गिरने को था, तभी स्कूल की सैकेण्ड़ हैड रामदुलारी ने आगे बढ़कर गिरते हुए झंडे को थाम लिया और अध्यापिकाओं और छात्राओं की ओर मुँह फेरकर उसने कहा, 'लानत ऐसी नौकरी पर और धिक्कार ऐसी शिक्षा पर । देश की लाज, इस झंडे को मैंने थाम लिया है, अब जो मेरा साथ देना चाहें, वे मेरे साथ आयें ।' सबसे पहले एक लड़की, लाल खट्टर की धोती पहने, न जाने कहाँ से कूदकर रामदुलारी के पास आकर खड़ी हुई और झंडा अपने हाथ में लेकर बोली, आओ, और कौन आती है ।'
मिसेज सरकार ने जो देखा उसकी आँखें खोलने को काफी था । वह लड़की और कोई नहीं उन्हीं की छोटी बेटी थी । मिसेज सरकार की आँखें फटी रह गयी, सिर चकराने लगा और वे धम से कुर्सी पर बैठ गयीं। उन्होंने चारों ओर देखा, सारा आँगन छात्राओं, अध्यापिकाओं, पुलिसवालों और हथकड़ी बेड़ी से मजबूर हड़तालियों से भरा है और सबके आगे तिरंगा झंडा लिये उनकी छोटी बेटी खड़ी मुस्कुरा रही है । तभी अचानक मिसेज सरकार उछलकर मेज पर चढ़ गयी और चिल्लाकर बोली- मैं स्कूल बंद करने की आज्ञा देती हूँ, पुलिस से मैं कोई शिकायत नहीं करती, छोड़ दो सबको, बोलो महात्मा गाँधी की जय । मिसेज सरकार में आये इस परिवर्तन से हड़तालियों और छात्राओं, अध्यापिकाओं में उल्लास भर गया और वह जुलूस आगे बढ़ गया । इस जुलूस के आगे-आगे मिसेज सरकार की छोटी बेटी चल रही है और पीछे-पीछे खुद मिसेज सरकार भी चीखती आ रही हैं । ' हड़ताल करो ! हड़ताल करो !!' इस कहानी में ऋषभचरण जैन ने तत्कालीन स्वयंसेवकों को यह संदेश दिया था कि उन्हें पूर्ण समर्पण से प्रयत्न पूर्वक आन्दोलन का कार्य करना चाहिए, एक दिन सफलता उन्हें अवश्य ही प्राप्त होगी ।
'उसके बाद ' शीर्षक से लिखित एक अन्य कहानी में जैन लेखक ने रामसिंह नामक एक नवयुवक का वर्णन किया। रामसिंह गरीब विधवा का इकलौता बेटा है । विधवा माँ चाहती है कि उसका बेटा शीघ्र ही पढ़ाई करके कमाने लगे और उसका विवाह भी हो जाये, परन्तु रामसिंह तत्कालीन आन्दोलन से प्रभावित होकर देश के लिए कार्य करने को तत्पर हो जाता है, वह माँ की बातों को टालता रहता है । एक दिन जब रामसिंह अपने कमरे में अपने मित्रों से बात कर रहा था, तो माँ ने उसकी बातें सुन ली और उसे यह सुनकर बहुत धक्का लगा कि उसका बेटा क्रांतिकारी कार्यों में भाग ले रहा है। उसने अपने बेटे को काफी समझाया, परन्तु रामसिंह नहीं माना । रामसिंह ने एक दिन पुलिस के अफसर 'मिस्टर' की गोली मारकर हत्या कर दी। सरकार ने रामसिंह को गिरफ्तार कर लिया और उसे फाँसी की सजा दी गयी । बूढ़ी माँ अपने एकमात्र सहारे रामसिंह को फाँसी दिये जाने का समाचार सुनकर बेहोश हो गयी, जब उसे होश आया, तो उसे अपने बेटे का अंतिम पत्र मिला। बेटे
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अन्य उपक्रमों में जैन समाज का योगदान
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