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ने लिखा था-'माँ, कल जेलर मेरे पास आया था। उसने मुझसे कहा, 'तुम्हें ता...को फाँसी दे दी जाएगी।' अच्छा है, एक दिन मरना सभी को है, जिनके जवान बेटे हैजे, प्लेग और अन्य बीमारियों के शिकार होकर मर जाते हैं, वे भी संतोष कर लेती हैं, जिन ग्रामीण माताओं के अबोध बालक औषध और अन्न के बिना भूखे-प्यासे तड़प-तड़पकर मर जाते हैं, वे भी अंत में कलेजे पर पत्थर रख ही लेती हैं। ...और माँ, तुम जानती हो, ऐसे मृतकों के साथ सहानुभूति प्रकट करनेवाले अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं और मेरे साथ तो सारे देश की सहानुभूति है, क्योंकि मैं अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं मर रहा हूँ। और माँ, सम्भव है कि मेरे मरने से देश उस कंटकाकीर्ण पथ पर एक कदम आगे बढ़े, जो शुरू से आखिर तक खून और तकलीफों से भरा है। बस माँ, मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार करो और फाँसी पाने के बाद मेरे शव का माथा चूमकर तुम सच्चे हृदय से मुझे आशीर्वाद देना, यही मेरी अंतिम कामना है।
रामसिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया जाता है और वह मातृभूमि के लिए बलिदान हो जाता है। इस कहानी में लेखक ने घर की परिस्थितियों के अनुकूल न होने के बाद भी रामसिंह के देश के लिए बलिदान होने का सजीव चित्रण किया है।
ऋषभचरण जैन की इसी तरह की कहानियों ने देशवासियों के मन में राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने की भावना पैदा की। ऋषभचरण जैन ने पैंतीस वर्ष की आयु तक (1946) पैंतीस पुस्तकों की रचना की। उन्होंने ड्यूमा और तल्स्टाय के कई कथा ग्रंथों का सफल अनुवाद किया। इन कथा ग्रंथों में 'कैदी, कंठहार, बादशाह की बेटी, षड्यंत्रकारी, महापाप और देवदूत' उल्लेखनीय हैं। श्री जैन ने 'चित्रपट' और 'सचित्र दरबार' पत्रिकाओं के सम्पादन द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में नये मानदंड स्थापित किये।
इस प्रकार ऋषभचरण जैन ने राष्ट्रीय आन्दोलनों के समय अपनी लेखनी से भारतवासियों को जागृत किया। उन्होंने कई नये लेखकों को भी प्रोत्साहन देकर देश के लिए लिखने हेतु प्रेरित किया।
जैनेन्द्र कुमार 2 जनवरी 1905 को कौड़ियागंज जिला अलीगढ़ में जन्में जैनेन्द्र कुमार जैन ने 1923 में नागपुर में हुए ऐतिहासिक झंडा सत्याग्रह के दौरान जेल यात्रा की। कारावास के दौरान ही उन्होंने अपना पहला लेख-'देश जाग उठा' लिखा। इस लेख के बाद जैनेन्द्र कुमार निरन्तर लिखते रहे। उनका 'देवी अहिंसे' नामक लेख भी बहुत चर्चित हुआ।
194 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान