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अगस्त 1947 को हमारे देश को स्वतंत्र होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस विजय के अवसर पर जैन पत्र-पत्रिकाओं ने अनेक लेख एवं समाचार प्रकाशित करके खुशी मनायी। कुछ पत्रिकाओं ने राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी के सम्बन्ध में भी लेख प्रकाशित किये।
'अनेकान्त' ने लिखा-15 अगस्त को जब समस्त भारत स्वतंत्रता समारोह में लीन था, तब हमारा राष्ट्रपिता कलकत्ते में बैठा सम्प्रदायिक विष पी रहा था। समग्र भारत की इच्छा उसे अभिशिक्त करने की थी, परन्तु वह कलकत्ते से हिला नहीं और उसने सांकेतिक भाषा में सावधान कर दिया कि जिस समुद्रमंथन से स्वतंत्रता सुधा निकली है, उसी से सम्प्रदायवाद-हलाहल भी निकल पड़ा है। यह मुझे चुपचाप पीने दो। इसकी अगर बूंद भी बाहर रही, तो सुधा को गरल बना देगी।
महात्मा गाँधी की मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अनेकान्त ने लिखा-राष्ट्रपिता के निधन पर हम क्या श्रद्धांजलि अर्पित करें? हम तो उनकी भेड़ थे। जिधर को संकेत किया बढ़े, जब रोका रुके, पर्वतों पर चढ़ने को कहा, चढ़े और गिरने को कहा, तो गिरे। श्रद्धांजलि तो हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी अर्पित करेगी, जिसे स्वतंत्र भारत में जन्म लेने का अधिकार बापू ने प्रदान किया।
इस प्रकार उत्तर प्रदेशीय जैन पत्र-पत्रिकाओं ने प्रारम्भ से लेकर अन्त तक भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अपना योगदान दिया। इन पत्रों की एक प्रमुख विशेषता यह भी रही कि ये व्यावसायिकता से पूर्णतः अछूती रही और निःस्वार्थ भाव से देश सेवा में संलग्न रही। जैन समाज ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद इन पत्रों का निरन्तर प्रकाशन किया तथा इनके माध्यम से लाभ अर्जन या अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति नहीं की। जैन पत्रों ने अहिंसावादी मूल्यों की स्थापना में तो बल प्रदान किया ही, साथ ही न केवल गाँधी जी के स्वदेशी आन्दोलन में रचनात्मक सहयोग दिया, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
सन्दर्भ 1. जैन मित्र, कार्तिक सु. 8, वीर नि.सं. 2464, पृष्ठ 6-8 2. ओसवाल नवयुवक, 1 मई 1937, पृष्ठ 20-23 3. जैन सिद्धान्त भास्कर, वर्ष 5, किरण 1, 1938, पृष्ठ 42-45 4 प्रकाशित जैन साहित्य (भूमिका), दिल्ली 1958, पृष्ठ 63, 65-67 5. जैन गजट, 21 जनवरी 1999, पृष्ठ 7, लखनऊ 6. वही, 1 दिसम्बर, 1985, वर्ष 1, अंक-एक 7. Progressive Jains of India, Satish Kumar Jain, Page 24 8. भारत में हिन्दी पत्रकारिता, सम्पादक-डॉ. रमेश जैन, पृष्ठ 386-397 9. गोयलीय अयोध्याप्रसाद, जैन जागरण के अग्रदूत, पृष्ठ 36
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 187