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यदि कोई सरकार जनता को इन अधिकारों से वंचित करती है तथा उसका दमन करती है, तो जनता को अधिकार है कि वह उस सरकार को बदल दे या जड़मूल से उखाड़ फेंके। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय जनता को केवल अपनी स्वतंत्रता से ही वंचित नहीं कर रखा, वरन् उसकी नीति सार्वजनिक शोषण
अनेकांत पर अवलम्बित है और उसने भारत को आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी नष्ट-भ्रष्ट कर रखा है। अतः हमारा विश्वास है कि भारत से ब्रिटिश सरकार को अपना नाता तोड़ लेना चाहिये और देश को पूर्ण स्वराज्य प्रदान करना चाहिए। हम अपने
तनमुखराय जैन उन सहस्त्रों साथियों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं, जिन्होंने
अनेकांत, मासिक पत्र का अंक स्वतंत्रता संग्राम में अपमान सहा मी तथा अपनी सम्पत्ति और जीवन तक न्यौछावर कर दिये हैं। उनका आत्म त्याग और बलिदान हम लोगों को अपने कर्तव्य का निरन्तर ज्ञान कराता रहेगा और जब तक हम चरम लक्ष्य पर न पहुँच जाये, तब तक हमें विश्राम न करने का उपदेश करता रहेगा। आज के दिन फिर हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम कांग्रेस के सिद्धान्तों का अनुशासन पूर्ण ढंग से पालन करेंगे और जब कभी कांग्रेस भारत की स्वतंत्रता के संग्राम के लिए आह्वान करेगी, तभी हम उसके इशारे पर मैदान में उतर आने के लिए सदा तैयार रहेंगे।
'जैन संदेश' के इस विशेषांक में देश के प्रमुख नेताओं के सन्देश भी प्रकाशित हुए। पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त ने अपने संदेश में कहा-'यह कहने में तनिक भी सन्देह नहीं कि जैन समाज ने स्वतंत्रता के आन्दोलन में बहुत बड़ा भाग लिया है और कितने ही कार्यकर्ताओं का राजनैतिक क्षेत्र में प्रमुख स्थान है। आशा है कि जैन समाज सदैव इसी तरह अग्रणी रहेगा।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने संदेश में कहा-'जैन शब्द का अर्थ है,
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00-00- 08-ee- - - -- - - - सम्पादक
संचालकजुगलकिशार मुख्तार नारसेवा मन्दिर सरमाया (सहारनपुर) कनाँद सरकम पी० ० ०८ देहलो 2 màu đen -
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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 185