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साथ दें। यदि उनको जेल में डाला जाये, तो हजारों व लाखों स्वयंसेवक खुशी से जेल जायें। बिना बलिदान के कभी भी कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती है। अब जब स्वतंत्रता की प्राप्ति का युद्ध छिड़ गया है, तब इसको अंत तक चलाना चाहिए और सफलता की आशा सच्चे भाव से करनी चाहिए। ___'जैन मित्र' ने लिखा-हमारे जैन भाइयों को भी इस अहिंसामय युद्ध में पूर्ण साथ देना चाहिए। वास्तव में देखा जाये तो यह कड़ा अहिंसामय तप जैन साधु के तप का नमूना है। जैसे जैन साधु आत्मस्वातंत्रय के लिए आत्मध्यान की अग्नि जलाते हैं और नाना प्रकार क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, आक्रोश, वध, अपमान आदि उपसर्गों को सहते हैं, परन्तु मन में किंचित् भी द्वेषभाव व क्रोधभाव नहीं लाते हैं और अपने कार्य में लगे रहते हैं, वैसे ही इस अहिंसामय युद्ध में महात्मा गाँधी जी स्वयं तप कर रहे हैं व दूसरों को भी प्रेरणा कर रहे हैं। यह तो एक जैनत्व का ही प्रयोग है। इसमें जैनों को तन-मन-धन से पूर्ण सहयोग करना चाहिए। क्या ही अच्छा हो कोई जैन धन कुबेर भामाशाह के समान खड़ा हो जाये और गाँधीजी के चरणों में अपना सर्व धन अर्पण कर दे। इससे बढ़के दूसरा अवसर देश की सेवा का नहीं हो सकता।
परमेष्ठीदास जैन (ललितपुर) ने जैन मित्र में एक लेख लिखकर अंग्रेजी सरकार को खुली चेतावनी दे दी। उन्होंने लिखा-यह आन्दोलन सत्यतापूर्ण आन्दोलन है, अब यह सिलग चुका है। वह तब तक नहीं बुझ सकता, जब तक कि अन्याय, अत्याचार एवं पराधीनता के किले को भस्म न कर देगा। भारतीयों को पुर्नजन्म पर विश्वास है, इसलिए उन्हें मरने का डर नहीं है। सरकार को अपनी जितनी शक्ति अजमानी हो अजमा सकती है। मेरा जैन युवकों से निवेदन है कि आप विश्वास रखें कि महात्मा गाँधी जो कुछ भी कहते हैं, वह भारत के कल्याण हेतु तथा हमारी और मनुष्यता की रक्षा के लिए कहते हैं। इसलिए जैन युवानों! आज ही सत्याग्रह संग्राम के सैनिक बनकर अपने वीर-धर्म-अहिंसा की रक्षा करो। भारत को स्वतंत्र बनाकर मनुष्यता प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाओ।
महात्मा गाँधी द्वारा नमक सत्याग्रह प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर भी जैन मित्र ने प्रभावपूर्ण सम्पादकीय लिखकर जैन समुदाय के साथ-साथ भारतवासियों को आन्दोलन से जोड़ने का प्रयास किया। पत्र ने गाँधी जी और उनकी शिष्यमण्डली की तुलना जैन साधुओं के संघ विहार से की।
जैन मित्र ने लिखा-अहिंसात्मक सत्याग्रह के लिए महात्मा गाँधी का 91 अनुयायियों को साथ लेकर पैदल रोज 10 व 12 मील चलते हुए अहमदाबाद से सूरत करीब 200 मील आना, पैदल चलने वाले शिष्य वर्ग सहित जैन साधुओं के दृष्टांत को चरितार्थ कर रहा है। यह अहिंसा व त्यागमय संघ भारतीय स्वतंत्रता के
174 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान