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हैं। आगरा में उन्होंने अच्छी हलचल उत्पन्न कर दी हैं । कंचनबाई के सन्दर्भ में पत्रिका लिखती है- कंचनबाई जैन कपूरचंद जैन की वीर पुत्री है। देश सेवा में इस सुकुमारी ने कमाल किया है। इस युवती ने अपनी मण्डली के साथ जैन मंदिर पर पिकेटिंग करके दर्शनार्थ आने वाले भाई बहिनों को देशी वस्त्र उपयोग करने की प्रतिज्ञा दिलाई है। 54
‘महावीर प्रेस' के माध्यम से 'हिन्दुस्तान समाचार' दैनिक पत्र भी कपूरचंद जैन ने निकालना प्रारम्भ किया । इस समाचार पत्र ने आगरा के साथ ही साथ आस-पास के इलाकों में अपनी पकड़ बनायी । पत्र में अंग्रेजी सरकार की नीतियों की खुले शब्दों में निन्दा की जाती थी । शीघ्र ही सरकार ने इस पत्र तथा महावीर प्रेस से 2000 रुपये की जमानत माँग ली । कपूरचंद जैन ने कांग्रेस के नेताओं के फरमान के मुताबिक कुछ समय के लिए प्रेस को बंद कर दिया 15
'जैन संदेश' (साप्ताहिक पत्र ) के माध्यम से भी देश की सेवा की गई। कपूरचंद जैन ने 1937 में जैन संदेश का प्रारम्भ कर दिया था । इस पत्र ने देश की पीड़ा को समझकर उसके अनुसार सामग्री प्रकाशित करनी प्रारम्भ कर दी ।
'जैन संदेश' ने राष्ट्रीय आन्दोलनों के दौरान सक्रिय होकर देश के आन्दोलनों में हाथ बँटाया । उसमें लिखे गये सम्पादकीय देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होते थे। ‘बेकारी की समस्या कैसे सुलझे ?' शीर्षक से लिखे गये सम्पादकीय में जैन संदेश ने लिखा- हमारे देश के सामने जनता की बेकारी दूर करने की एक जटिल समस्या उपस्थित है। देश की आर्थिक दशा का अनुमान इसी बात से किया जा सकता है कि भारत के 35 करोड़ निवासियों में से कुछ लाख मनुष्य ही ऐसे हैं, जिनकी वार्षिक आमदनी दो हजार या उससे अधिक है । यदि देश की कुल आमदनी को उसके 35 करोड़ निवासियों में बाँटा जाये, तो प्रति व्यक्ति आय 24 रुपये प्रतिवर्ष का ही औसत आता है। इस औसतन आमदनी में शहरी लोगों की भी आमदनी सम्मिलित है। इस हिसाब से देखा जाये तो ग्रामीण अंचलों में रहने वाले भारतीयों की स्थिति तो और भी दयनीय होगी। गृह उद्योग समिति के अध्यक्ष कुमारय्या की रिपोर्ट के अनुसार- ग्रामीण भारतीयों की सालाना आय का औसत तो मात्र 12 रुपये प्रति व्यक्ति ही है । इसका मतलब यह हुआ कि एक ग्रामवासी एक दिन में दो पैसे पैदा करता है । इस औसत से भारत के ग्रामवासियों की गरीबी और बेकारी का भयानक चित्र आँखों के सामने खिंच जाता है। जीवन के लिए दो चीजों की अत्यन्त आवश्यकता होती है, एक निवारण के लिए अन्न की और दूसरे तन ढांकने के लिए वस्त्र की । भारतीयों के लिए इस अंग्रेजी राज में इनका प्रबंध करना भी मुश्किल पड़ रहा है।
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पत्र ने आगे लिखा- पिछले समय में जब भारत का भाग्य सूर्य चमक रहा था, भारत के निवासी न केवल अपने लिये ही वस्त्र तैयार करते थे, अपितु यहाँ के तैयार
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 181