Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 181
________________ ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने भी समय-समय पर जैन मित्र के सम्पादक के रूप में जनता से अपीलें की। एक अपील थी-शीर्षक 'वर्तमान में दावतें बंद होनी चाहिये' इसके अंतर्गत ब्रह्मचारी जी ने लिखा-जब देश में हाहाकार फैला है और महान अहिंसात्मक युद्ध छिड़ रहा है और बड़े-बड़े नेता जेल में घोर कष्ट भोग रहे हैं, तब यह शोभता नहीं है कि हम दावतें करें या दावतें उड़ावें। हम अपने भाइयों से कहेंगे कि वे हाल में कोई भी जीमन कहीं न करें। दशलाक्षणी व रत्नत्रय व्रत के उपलक्ष्य में जो जीमन करना हो, उसको भी बंद रखें और जो पैसा एकत्रित हो, उसे देश सेवा में दें। इस समय हम सभी का यही कर्तव्य है। यह समय शोक का है। जब 18000 देश के रत्न देश के पीछे जेल में दिन काट रहे हैं, मोटी जआर की रोटी चाब रहे हैं, तब हम लोग परस्पर मिठाई उड़ावें, यह बिल्कुल ही अनुचित है।6। ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद ने 'जैन मित्र' के माध्यम से देश सेवा में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उनकी प्रेरणा का ही यह फल हुआ कि संयुक्त प्रान्त के जैन पत्रपत्रिकाओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन में राष्ट्रीय चेतना की आगवानी की। दिगम्बर जैन' पत्रिका जो सूरत से निकाली जाती थी, ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से ही देशभक्ति के मार्ग पर अग्रसर हुई। इस पत्रिका ने भी अपने प्रत्येक अंक में स्वतंत्रता आन्दोलन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित की। आगरा से निकलनेवाले जैन पत्र-पत्रिकाओं ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी विशेष भूमिका अदा की। इन पत्रों में जनता को प्रेरित करने के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित की जाती थी। 'मैं जिन्दा हूँ' शीर्षक से लिखे एक नाटक में आगरा से प्रकाशित 'वीर संदेश' ने बड़ा मार्मिक चित्रण प्रकाशित किया और जनता से देश को स्वतंत्र कराने की अपील की। महेन्द्र जैन द्वारा सम्पादित 'वीर संदेश' भारतवासियों में देश प्रेम की भावना जगाने में साधन बना। इस पत्र के प्रत्येक अंक में देश के राष्ट्रीय नेताओं के चित्र एवं समाचार प्रमुखता से प्रकाशित होते थे। वीर संदेश की भावना देश के लिए सदैव समर्पित रही। उसके मुख पृष्ठ पर प्रकाशित 'वरदान' कविता में मातृभूमि की महिमा का सविस्तार वर्णन किया गया। वीर संदेश ने समय-समय पर देश के आन्दोलन से सम्बन्धित निर्भीक टिप्पणियाँ की। सायमन कमीशन के सम्बन्ध में उसने लिखा-12 अक्टूबर, 1928 की आधी रात को श्री सायमन ने भारत की भूमि पर अपने चरण रखे, अतिथि प्रेमी भारतीय जनता ने 'तृणानि भूमिरूदकं' के अनुसार काली झंडियों और ‘सायमन लौट जाओ' के बुलंद नारों से उनका स्वागत किया। उसी रात को उन्होंने अविलम्ब पूना की यात्रा की, जिसके दौरान स्टेशन-स्टेशन पर उनके स्वागत में वही पूर्व कथित मधुर राग गाये गये। बम्बई युवक संघ ने पूना स्टेशन पर उनके स्वागत के लिए काली भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 179

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