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मादक वस्तुओं का प्रचार-खासकर शराब का प्रचार बंद कराना बहुत ही जरूरी है। जैनियों को चाहिए कि जिस गाँव में वे रहते हैं, वहाँ शराब की दुकान को उठवाने का उद्योग करें। ग्रामवासियों को मदिरा के दोष बताकर उनसे मद्यत्याग की प्रतिज्ञा करायें। इससे ग्रामवासियों का बहुत बड़ा उपकार होगा। जैनियों को आवश्यक है कि वे देशी औषधियों से ही काम चलायें, परदेशी औषधियों को बिल्कुल भी काम में न लें। इससे हमारा संयम भी पलेगा व देश का हित भी होगा। प्यारे भाई व बहिनों! आपको खादी व अन्य हाथ के बने वस्त्रों के पहनने के लिए नियमबद्ध हो जाना चाहिए। अब शौकीनी को छोड़ देना चाहिए। इसने हमारा भारी नाश किया है। जब भारत माता परतंत्र है, तब भारतीयों की वह शौकीनी, जिससे यह परतंत्रता के बंधन में जकड़ी रहे घोर हिंसात्मक व स्वघात करानेवाली है। जैन नेताओं को आवश्यक है, कि जो जो लोग मंदिर व उपाश्रय में दर्शन करने आते हैं। उनमें से एक-एक को समझाकर देशसेवा की प्रतिज्ञा कराने का काम अपने हाथ में लें। देश सेवा के साथ-साथ दया व परोपकार का भाव होने से यह सेवा पुण्य कर्म को बाँधने वाली है। इसके सिवाय देश की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए जो जो आज्ञा कांग्रेस निकाले, उसको शिरोधार्य करना चाहिए। जहाँ व जब कभी सत्याग्रह करने का काम पड़े, उस समय उसकी सफलता को जैनियों को पूरी-पूरी मदद करनी चाहिए।
'जैन मित्र' निरन्तर अपने सम्पादकीय वक्तव्यों में इसी प्रकार की प्रेरणा जैन समुदाय को देता रहा। पं. जवाहरलाल नेहरू का संदेश जैन मित्र ने प्रकाशित किया, जिसमें नेहरू जी ने कहा-अब हमने प्रगट यंत्र खोल दिया है, जिससे हम इस देश को विदेशी शासन से स्वतंत्र करें। सब साथियों को और सभी देश के नर-नारियों को निमंत्रण दिया जाता है कि वे इसमें शामिल हों, परन्तु उनके लिए जो भंडार में इनाम मिलेंगे, वे कष्ट हैं, कैद हैं और शायद मरण भी हों।
सरदार वल्लभभाई पटेल की गिरफ्तारी पर जैन मित्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा-महात्मा गाँधी स्वतंत्रता का युद्ध अहिंसात्मक प्रयोग के द्वारा तारीख 12 मार्च, 1930 को प्रारम्भ करने वाले थे। उसके पहले ही उनके दाहिने हाथ, देश व प्रजा के सच्चे हितैषी, बारडोली के कृषकों का कष्ट निवारण करने वाले बम्बई सरकार पर विजय की पताका फहराने वाले श्रीयुत् सरदार वल्लभ भाई पटेल को तारीख 8 मार्च के दिन जेल भेज दिया गया। दुःख, महादुःख है कि देश के सच्चे हितैषी के साथ सरकार ने ऐसा कठोर व्यवहार किया। इस दमननीति के कारण भारत में चारों
ओर स्वतंत्रता के लिए मरने हेतु आग भड़क उठी है। चारों तरफ देश में सभाएं हो रही हैं। सरदार की कुर्बानी को देखकर स्वयंसेवक हजारों की संख्या में तैयार हो रहे हैं। ऐसे समय में आप भारतीयों का यह परम धर्म है कि वे महात्मा गाँधी जी का
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 173