Book Title: Bhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Author(s): Amit Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 173
________________ पाएसम्परा शान मान करने के लिये मापने अमेरिका मार कर सके। यह हमारे माता-पितानोंका अपराध बहवसी संस्थानोका निरीक्षण किया इन्होंने फीरो-है जो जैनधर्मकी शिक्षा पारम्ममें नहीं देते है। मपुर व मेरठके अनाथाल्बोका भी प्रबंध किया । आपका श्रद्धान भायंत्रमानके सिद्धांतोयर अन्ततक LUDE A सन् १९० र सहान फमिन कमीशनम मटम न रहा। मापनेचर गवाही देकर देशकी बड़ी सेवा की। सन १९० दिया भाबिर कुछ वोट मो. हमने बाबा समे निमोल सापरण्या। मेंगडा मिले में भारी मूचाल मामाया तब भीक मापण हुने उनसे पता चलता था कि माप पाम्पत्यमा विपरीतो. बापने दुःसिक पीड़िता बहुत काम किया था की रूपरेती मागणी मानारीबीने सामालाविषयावर मनिवास रस्म भाप भारतीय राट्रीय समामें आपको कुछ न बनकी परत पडनेको बीबीसो शामिल हुए और वरसे कमिस द्वारा देशकी सेवा आपने बहुत प्रेयसे अहम की थी। सासर बदारवार सम्बत करते रहेमनरहरडोरेमवेन्टाफहम अपने सच्चे हायसे भावना मत सुस्वार वा०२९ नवम्बर सन् १९२टापीपक सोसायटी स्थापित की निदरा सन बाळामीकी मात्माको सुख शांतिकी प्राप्ति हो समा। राबर्गका बहुत रहार किया। १९. नवसर्ग- उनके सपत्रक साथ समवेदना प्रगट करते हर सम्पादकाय-वक्तव्योपकर मायको देश निकाला दिया तब भाप यह मेरणा करते है किमी परोपकार वृतिको अपने उदेश्वर इंटे रहे और कीटकर पूर्वक्त देश- पारण करें तथा इस नधर्मको भी समझे और हाजन वैश्यकली- सेवा की। महायुद्ध में सांसे भापको इससे काम उठायें । अमेरिका मेज दिया, कई वर्षों पीछे माय पुनः लाला लाजपतराय! अध्यात्मिक सोपान। एमाव-केशरी लाला लाजपतराय वर की 1९१०ीता मेमके समय बहाचर्य महाबत। सुने इस शरीरको त्यागकर परलोक सिधार गए । मापने प्रेसीडेन्ट होकर बहुत सेवा की। सम्म ) मम बनवान कुब्ने हुमा था। माटी मी आपकी स्पीचे माकी होती थी। यह जानी ऐनक निर्मकी साइना माता मनमा। आपका भन्म मिका महासमाकी भी आपने बहुत सेवा की। हमा भान पांच महानायसे मान बाकी अपना आम नागराममें हुमा था। बादामीके मोतीलाल नेहरू लिखित देश शासन के मसौदे की भावना मा रहा है। यह व्रत भी परमोपकारी है। पारस उनकी माताका बड़ा मसर मामो बहुत भारी पुष्टि मापने की। भापके हो भन्दोलनसे अपने मनकी वृत्तिको काम संत्रासे मिल रखना। एकापयंभमें निपुणबी। आप वि-यह मसौदा हिन्दू मुसम्मानोको मधिश रूपसे परम ब्रहावत है। जब मनका बर्तन अपने मामभावना बहातेमायाकमाव यूनिवसिटीम मान्य होगमा साइमन कमीशन के विरोध में आपने स्वरूप रमने लगता है तब अन्य विषयोंसे उदास नमा परीक्षा पास के सामानाने सनर उनित भाग लिया और बाहोरमें एक मही देश होनाता है बप्ती समय यह मेथुन संशा निरक का गुरुहार मापकी मायुयसको सेवाके साथ बापने सहमनवानको होमाती है। वास्तव में मामध्यानके लिये मेथुन मलेपकार दिखा दिया कि देश लोग साइम- भाव वनित वृत्तिकी बहुत बड़ी आवश्यक है। मायामालाबासनवमेका ज्ञान नया नाकी निलकुमकदर नहीं करते हैं। निम जहाँ ऐसा परिणाम हो जाता है कि भगत सर्व काजमानद सास्वताय बर मोर मास इससे माफिसर उनकी इस देशभक्तिसे बिगए थे ऐसा स्त्री पुरुष सरसमान दिखते . किसीकी भी काम आमनागोमागया। मामला इसीलिये उन्होंने मामा देखकर परिणाममाम विकार नही पदा होता। काम मापनेल कुशव्यम किया। मोर ऊपर ऐसी काठियोंकी मार दी मिसभाहनही चित-निर्मक थान में अड़े प्रकार मान-हो विधायी तमा हंसरान भाप वो जबर मापके भीबनके वियोग कारम पर गया। मामात्म और पुलोस बझबर्व मामीने इन दोनों व्यक्तियों की मद मास्तबमें देखा माने तो मापने मामा जीवनी व्रतको पाते हैं। वे अपने परिणामोंमें यह मान मार जूनम दयानन्द एलोवेविदेश उपर न्यौछावर कर दिया। बारूपनसे रखते कि ऐसा निमित्त न मिळाया नावे निससे मामा का और इसके लियशवहार मरणतक भापका जीवन चरित्र परोपकारताके खिोम सग बहाने वाली माओको बना माये। पसलिये। बह १२ मनु-रमसे भरपूर मापके भीवनकी सेवा अनुधरन ऐसी पुस्तक पढ़ते हैं जिनके द्वारा लियोनि बीकोरड़ाने में भी भाग लेते गी। मग उपनदो। मपनी हि ऐसी नि यामपनी बहीदि मापको मायाबम्बामनधर्मका जाम खते कि खियोंकि रूपको देखते हर मोनि मामालास कालेनको देते का दिया जाता तो बाप हासनमकी मार नहीं काते हैं । मिन मनोहर अंग देखन। सकट कामकभी मत्री रहे बवा होमाती। जेसी सेवा मापने कार्यस काम मात्र उत्सव होता है सनकीपने समानता मचान डिया शिक्षा संबंधी मामी कीबसी कुछ मेनसमामकी भी बाप भायोको अलग रखते हैं। की भामरति 'जैन मित्र' में प्रकाशित लाला लाजपतराय पर लिखा गया सम्पादकीय, 1928 राष्ट्रीय जीवन में भी खुलकर भाग लेना चाहिए। जैन मित्र ने लाला जी के स्मारक हेतु धन देने की भी अपील की। उसने लिखा- डाक्टर अनसारी, घनश्यामदास बिडला व पंडित मदनमोहन मालवीय ने लाला जी के स्मारक के लिए पांच लाख रुपये की अपील की है। हम जैनों का भी कर्तव्य है कि लाला जी के कार्य की सेवा में हाथ भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 171

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