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साथ ही प्रत्यक्ष रूप से भी स्वतंत्रता के इस यज्ञ में अपनी आहुति दी। वर्तमान में भी वीर का प्रकाशन व्यवस्थित ढंग से चल रहा है।
सन् 1921 में वाराणसी से ‘अहिंसा' नाम की साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इस पत्रिका का प्रकाशन अखिल भारतीय अहिंसा प्रचारिणी परिषद् के प्रथम अधिवेशन से प्रारम्भ हुआ। यह अधिवेशन काशी नागरी प्रचारिणी समिति के भवन में डॉ. भगवानदास जी के सभापतित्व में हुआ था। परिषद् तथा पत्रिका की स्थापना में पंडित उमरावसिंह जैन (न्यायतीथ) ने अथक परिश्रम किया। परिषद् एवं पत्रिका के प्रचार के लिए उपदेशक घुमाये गये, जैनेतर जनता ने भी इस कार्य में अच्छा हाथ बंटाया। अनेक रजवाड़ों ने भी सहानुभूति प्रदर्शित की। बहुत से रईस एक मुश्त सौ-सौ रुपये देकर परिषद् के आजीवन सदस्य बने। प्रारम्भ में 'अहिंसा' का प्रकाशन एक-दूसरे प्रेस से होता था। कुछ ही समय बाद एक स्वतंत्र प्रेस खरीद लिया गया, जो अहिंसा प्रेस के नाम से विख्यात् हुआ।
____ 'अहिंसा' पत्रिका ने असहयोग आन्दोलन के दौरान भारतीयों में पारस्परिक सहयोगी भावना का संचार करने में तथा विदेशी शासन प्रणाली को ध्वस्त करने में अपनी अहम् भूमिका निभाई। राष्ट्र का तत्कालीन अस्त्र ‘अहिंसा' का नाम धारण कर 'अहिंसा पत्र ने राष्ट्र की आवाज में आवाज मिलाकर महत्वपूर्ण कार्य किया। पत्रिका ने अंग्रेजी सरकार की खुले शब्दों में निन्दा की तथा गाँधी जी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलनों का समर्थन किया। सरकार ने कई बार रूष्ट होकर 'अहिंसा' पर मुकदमे चलाये, परन्तु उसका स्वर मंद नहीं पड़ा।
____ 'आज' समाचार पत्र का एक समाचार था-शीर्षक 'मानहानि का अभियोग', 'पायनियर का संवाददाता शिलौंग (आसाम) से तार देता है कि आसाम सरकार ने 'सर्वेट', 'यंग इण्डिया' और 'अहिंसा' पत्रों में प्रकाशित पुलिस अधीक्षक और सहायक पुलिस अधीक्षक के ऊपर लगाये गये दुर्व्यवहार के अभियोग को पढ़ा है। उक्त अफसर इस सम्बन्ध में कहते हैं कि यह अभियोग झूठा है। अतः सरकार ने इन तीनों पत्रों के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी हैं।'32 'अहिंसा' पत्र उस समय राष्ट्रीय गतिविधियों में विशेष सजग रहता था। जैन समाज के इस पत्र ने सभी आन्दोलनों में अपना योगदान दिया।
'अहिंसा' की ही भाँति जैन मित्र' ने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया। जैन मित्र का पहला अंक सन 1900 में निकला था। पहले वर्ष से लेकर नवें वर्ष तक इसके सम्पादक आगरा निवासी पंडित गोपालदास बरैया रहे। श्री बरैया महान् जैन विद्वान थे, उन्होंने ही इस पत्र का प्रारम्भ कराया था। कालांतर में प्रकाशन की सुविधा के कारण 'जैन मित्र' सूरत से निकलने लगा। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों का समर्थन इसने पूरे जोश के साथ किया। जैन मित्र का समर्थन गाँधी
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 169