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भारत में सनसनी पैदा कर दी । कलकत्ता में उनकी अंतिम यात्रा में 5 लाख जनता सम्मिलित हुई। देश के कोने-कोने में जलसे हुए । इसी प्रकार बौद्ध भिक्षु का समाचार, पत्र में इस प्रकार प्रकाशित हुआ-बर्मा जेल में बौद्ध साधु श्री विजया ने इस बात पर भूख हड़ताल की कि बौद्ध साधुओं को उनके धर्मानुसार पीले वस्त्र एक पक्ष में दो बार पहनने को दिये जाये । उन्होंने 161 दिन उपवास करके इस शरीर को त्याग दिया । इनके बलिदानों पर बड़ी व्यवस्थापक सभा में सरकार के विरुद्ध प्रस्ताव रखे गये, जिनमें सरकार की कठोर नीति पर कड़ी समालोचना की गई और सरकार के विरुद्ध प्रस्ताव पास किये गये ।
महात्मा गाँधी के संयुक्त प्रान्त के दौरों की खबरें भी 'वीर' प्रकाशित करत था । पत्र में एक समाचार था - 'आजकल महात्मा गाँधी प्रान्त में दौरा लगा रहे हैं, जहाँ-जहाँ जाते हैं, वहाँ-वहाँ जनता की ओर से उन्हें थैली भेंट की जा रही हैं। आशा की जाती है कि उन्हें प्रान्त से दो-तीन लाख रुपया भेंट में मिल जायेगा, यह रुपया खादी प्रचार में लगेगा। संसार में आज महात्मा गाँधी सबसे महान् व्यक्ति है । देशभर को उन पर पूरी श्रद्धा है और जनता हृदय खोलकर उनका स्वागत करती है। ग्रामीण जनता तो उनके दर्शनों के लिए लालायित है, बीसों मील से जनता उनके दर्शनों को आती है। 28
इसी प्रकार ‘वीर' ने संयुक्त प्रान्त में चल रही गतिविधियों पर नजर रखी तथा अपने पाठकों को इन समाचारों से लाभान्वित किया । 'वीर' की लोकप्रियता जैन समाज में काफी व्यापक थी । पत्र में सूचनाएँ और समाचारों के अलावा बहस, बातचीत और वाद-विवाद आदि शीर्षकों के माध्यम से पाठकों को लाभान्वित किया जाता था। प्रत्येक अंक में पिछले अंक की सामग्री पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ प्रकाशित की जाती थी ।
पत्र के बारे में 'तीर्थंकर' विशेषांक लिखता है, 'वीर' पाठशालावादी और परीक्षाफल छापू अखबार नहीं था । वह जैन होते हुए भी एक व्यापक उदार राष्ट्रीय अखबार था। उसके संपादक खुद स्वतंत्रता आन्दोलन में सपत्नीक जेल जा चुके थे । पत्र में आजादी, देशभक्ति, गाँधी, नेहरू और सुभाष पर तथा ढिल्लन, सहगल, शाहनवाज की गिरफ्तारी के विरोध जैसे विषयों पर रचनाएँ छपती थीं । राष्ट्रीय समाचारों, निर्णयों और घटनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता था । इनके साथ ताजा चित्र भी होते थे । वीर में छपे समाचारों को पढ़ने के लिए लोग टूट पड़ते थे। हर कस्बे में वीर के बहुत ग्राहक थे । ग्राहक के साथ ही इसमें लिखने वाले भी बहुत थे ।" 'वीर' के सम्पादकों में ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद, पंडित परमेष्ठीदास जैन, राजेन्द्रकुमार जैन, अक्षयकुमार जैन, बाबू कामताप्रसाद जैन का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिन्होंने पत्र के माध्यम से तो देश के आन्दोलन में भाग लिया ही,
168 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान