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भारतवर्ष में भारत भूमि की भक्ति की अजब धूम मच रही है। घर-घर में बन्देमातरम् शब्द की गूंज हो रही है। जगह-जगह देश हितैषिता की चर्चा हो रही है। बहुत लोग परोपकार के ऊपर न्यौछावर हो रहे हैं। नगर-नगर और ग्राम-ग्राम में सभायें और जलसे होते हैं। देश हितैषिता पर बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जा रहे हैं और परोपकार का जोश फैलाया जा रहा है। देश के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं के प्रति भारतीय जनता के सम्मान एवं प्रेम का उल्लेख करते हुए जैन गजट ने लिखा- 'जब देश भक्तों को राजदण्ड दिया जाता है, तो सारे भारत में इसका शोक होता है, इस शोक में समाचार पत्रों के अनेक पत्र काले होते रहते हैं और उनके छूट जाने पर घर-घर बधाई होती है। मंगल गीत गाये जाते हैं और गाजे-बाजे के साथ फूलों की वर्षा करते हुए वह जेल खाने से घर तक बड़े उत्साह के साथ लाये जाते हैं।' पत्र ने देशवासियों में स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार करते हुए लिखा-'भारतवासी विदेशी वस्तुओं को ग्रहण करना त्याग देवें और भारत की ही बनी हुई वस्तु को बर्ते और स्वयं सर्व प्रकार की वस्तु बनाना प्रारम्भ करें।
बंग-भंग के समय बंगाल निवासियों द्वारा अंग्रेजी सरकार के तीव्र विरोध का उल्लेख करते हुए जैन गजट ने लिखा-धन्य है बंगाल के शूरबीरों को कि उन्होंने लार्ड कर्जन की इस नीति का साहस के साथ विरोध किया। बंगालियों ने सरकार का इस साहस के साथ विरोध किया कि सारे जगत में खलबली मच गई, उन्होंने पहले से भी अधिक ऐक्यता करके यह दिखा दिया कि बंगालियों के विरुद्ध कार्य करने का क्या फल होता है और वह रुष्ट होकर क्या कर सकते हैं। बंगाली लोगों ने दृढ़ साहस के साथ विदेशी वस्तुओं का त्याग किया। घर में जो कुछ विदेशी वस्तु कपड़े-लत्ते आदि थे, सब जला दिये और देशी ही वस्त्र पहनने लगे। जो धनाढ्य महाशय पाँच-पाँच रुपये गज का कपडा पहनते थे, वह दो आने गज का देशी मोटा कपड़ा पहनने लगे, उच्च घराने की स्त्रियाँ जो दो-दो रुपये गज की मलमल और दस-दस रुपये गज का रेशम पहनती थीं, उन्होंने भी मोटा कपड़ा स्वीकार किया। इस प्रकार विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करके उन्होंने अंग्रेजी सरकार को कड़ा जवाब दिया।
___ जैन गजट' ने जैन समाज से भी विदेशी वस्तुओं को त्यागने का आह्वान करते हुए लिखा-यदि 14 लाख जैनियों (तत्कालीन भारत की अनुमानित जैन जनसंख्या) में पहले पहल दो-चार भी विदेशी वस्तु त्याग करें, तो बहुत है। उनके देखा-देखी और समझाने से अन्य दस-बीस त्याग करेंगे और फिर उनकी कोशिश से 100 वा 200 भाई त्याग करेंगे और फिर इस प्रकार प्रथा चल पड़ेगी और सम्पूर्ण जैन जाति विदेशी वस्तुओं को त्याग कर स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने लगेगी। जो जैन भाई विदेशी वस्तु का त्याग करते जाये, उनको उचित है कि वह इसकी सूचना तुरंत जैन गजट में दें। जैन गजट उनका नाम धन्यवाद के साथ प्रकाशित
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 161