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का संयम, स्वदेशी व्रत, निर्भयता का व्रत, अछूतोद्धार, राजनीति आदि महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर गाँधी जी ने प्रकाश डाला । " जैन हितैषी पत्रिका निरन्तर राष्ट्रीय आन्दोलनों में भागीदारी करती रही ।
हाथरस से प्रकाशित जैन मार्तण्ड का प्रारम्भ 1916 से हुआ। इस पत्रिका ने भी निरंतर देश के आन्दोलन में काम किया। इसकी टिप्पणियों से नाराज होकर ब्रिटिश सरकार ने कई बार इसे चेतावनी दी तथा कई बार पत्रिका से जमानत माँगी गयी । इटावा से 1918 से प्रकाशित 'सत्योदय' मासिक पत्रिका ने भी भारत के नागरिकों को देशभक्ति की ओर प्रेरित किया ।
इस पत्रिका ने आजादी के सभी आन्दोलनों में भागीदारी की 'पटेल बिल' जैसे मुद्दों पर तो 'सत्योदय' ने पूरा मोर्चा ही खोल दिया । उसने लिखा- पटेल बिल पर इस समय देशभर में बड़ी ले-दे हो रही हैं इस बिल का विरोध वहीं कर रहे हैं, जिसने इसे भली-भाँति नहीं समझा । माननीय पटेल जी ने इम्पीरियल कौंसिल में यह बिल इसलिए पेश किया है कि एक जाति या वर्ण का हिन्दू यदि दूसरी जाति या वर्ण के हिन्दू के यहाँ विवाह कर ले, तो इस विवाह से, जो सन्तति हो, वह कानून की दृष्टि में जायज समझी जाये । अतः इसमें तो किसी को विरोध नहीं करना चाहिए, इसका विरोध करना मूर्खता है । 2 इसी प्रकार अन्य मुद्दों पर भी पत्रिका निरंतर लिखती रही ।
सन् 1921-22 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन की रणभेरी बज रही थी। इस समय संयुक्त प्रान्त के जैन समाज ने कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ किया। अखिल भारतीय जैन महिला परिषद् का 11वां अधिवेशन मई, 1921 में लखनऊ में सम्पन्न हुआ । इसी अवसर पर 'जैन महिलादर्श' मासिक पत्रिका निकालने का निर्णय लिया गया। इसके सम्पादन का उत्तरदायित्व माँ श्री चंदाबाई को सौंपा गया। माँ श्री ने लगातार 52 वर्षों तक इसका सम्पादन किया । 23
'जैन महिलादर्श' ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर देश का साथ दिया । उन दिनों भारतीय नारी की स्थिति बहुत दयनीय थी। जैन महिलादर्श ने नारी जागरण का आन्दोलन चलाकर महिलाओं को अपने अधिकारों से परिचित कराया तथा देश के लिए कार्य करने को प्रेरित किया। पत्रिका की सम्पादिका चन्दाबाई जी की प्रशंसा सभी राष्ट्रीय नेता करते थे । उनकी सम्पादकीय टिप्पणियाँ सदैव देश के लिए कार्य करने को प्रेरित करती थी ।
8 नवम्बर 1923 में अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् मेरठ ने 'वीर' पाक्षिक पत्र शुरू किया। यह पत्र तब से आज तक निरन्तर प्रकाशित हो रहा है 'वीर' पत्र की स्थापना में ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद का योगदान उल्लेखनीय रहा।
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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 165