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उनके साथी पंचमलाल जैन 19 फरवरी, 1941 को चावली (आगरा) में सत्याग्रह करते हए गिरफ्तार कर लिये गये। लोहा मंडी आगरा निवासी मक्खनलाल जैन के पुत्र पद्मकुमार जैन ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान 3 अगस्त 1941 से 4 जनवरी 1942 तक जेल यात्रा की।
पन्नालाल जैन पत्र चन्नीलाल जैन इरादत नगर आगरा भी इस आन्दोलन के दौरान 7 जुलाई, 1941 को पकड़े गये और उन्हें 3 माह जेल में रखा गया। उन पर 10 रुपये का जुर्माना भी किया गया। महेन्द्र जैन भी इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिये गये। उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार उन्हें 15 अप्रैल 1941 को कैद किया गया और वे 18 दिसम्बर 1941 को रिहा कर दिये गये।
व्यक्तिगत सत्याग्रह के बाद शुरू हुए 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में आगरा के जैन समाज ने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। बम विस्फोट, प्रदर्शन, गिरफ्तारियाँ, समाचार पत्रों का गुप्त प्रकाशन आदि कार्यों में जैन नागरिकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। गोर्धनदास जैन ने कई बम विस्फोट कराकर अंग्रेजों की नींद उड़ा दी। श्री जैन आगरा में 'मास्टर साहब' के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से सेठ गली आगरा के सिटी पोस्ट ऑफिस को उड़ाने के लिए एम.एस.सी. के विद्यार्थी हुकुमचंद जैन को एक लिफाफे में बम रखकर पोस्ट ऑफिस में पार्सल कराने हेतु भेजा। हुकुमचंद जैन के पार्सल कराने के कुछ ही समय बाद वह बम फट गया और पोस्ट ऑफिस का आधा फर्नीचर उड़ गया। इसी प्रकार गोर्धनदास जैन ने आगरा कॉलेज के प्रिंसीपल की मेज की दराज में बम रख दिया। कुछ ही देर बाद विस्फोट हुआ और वह मेज छत तक उड़कर टूट गई।
चिम्मनलाल जैन ने भी इसी प्रकार के अनेक कार्यों में भाग लिया। लेखक को दिये एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया था कि आगरा में बम विस्फोट की योजना बनाने में उनकी अहम् भागीदारी रहती थी। श्री जैन अपने आवास पर छिपाकर बम रखते थे और जहाँ आवश्यकता पड़ती, वहाँ उन्हें पहुंचाने के लिए सदैव सजग रहते थे। पूरे शहर में उनके द्वारा बमों की पूर्ति कराने की बात शीघ्र ही पुलिस को पता चल गयी फलस्वरूप सरकार ने ध्वंसात्मक कार्य करने के अपराध में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार श्री जैन को 12 फरवरी, 1943 को धारा 129 के तहत गिरफ्तार किया गया और लम्बे समय तक नजरबंद रखा गया।
__ आगरा के समीप ही स्थित कागारौल नामक गाँव में एक सरकारी डाक बंगला स्थित था। क्रांतिकारियों ने रात के समय धावा बोलकर डाक बंगले में आग लगा दी। अग्नि की पकड़ इतनी तेज हुई कि डाकबंगले का सारा सामान जल गया और अंत में पूरी बिल्डिंग बुरी तरह फट गयी। इस अग्निकाण्ड की खबर चारों ओर फैल
भारत छोड़ो आन्दोलन में जैन समाज का योगदान :: 129