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आन्दोलन में काम करते-करते शहीद हो गये।
_ ब्रिटिश सरकार के दमन के बावजूद भी महाविद्यालय के छात्रों का उत्साह कम नहीं हुआ और वे लगातार क्रांतिकारी कार्य करते रहे। 7 फरवरी 1943 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बम विस्फोट हुआ। जिससे सारे अंग्रेजी शासन में हड़कम्प मच गया। पुलिस ने जैन छात्र संघ स्याद्वाद महाविद्यालय के नेता बालचंद जैन को इस सम्बन्ध में गिरफ्तार कर लिया। 'जैन संदेश' के राष्ट्रीय अंक के अनुसार हिन्दू विश्वविद्यालय में हुए बम धमाके के सिलसिले में बालचंद जैन कैद कर लिये गये। इस केस के सिलसिले में उन्हें काफी यातनायें सहनी पड़ी। अमानुषिक तरीकों से उन्हें इस षड्यंत्र में भाग लेनेवालों के नाम बताने के लिए मजबूर किया गया। इस प्रसंग में पुलिस को हरीन्द्रभूषण जैन का नाम पता चला। हरीन्द्र जी अभी कुछ दिन पहले ही जेल से छूटे थे। निदान उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़कर रातों रात फरार होना पड़ा। बालचंद जैन ने अनेक कष्टों के बावजूद वीरता दिखाई। पूरे दो वर्ष उन्हें जेल में रखा गया। पुलिस सदैव यह संदेह करती रही कि उनके पास दर्जनों पिस्तोलें हैं। उनका सम्बंध देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों से था।
विश्वविद्यालय बम षड्यंत्र में जैन महाविद्यालय का नाम आने के कारण सरकार का सी.आई.डी. विभाग समय-समय पर महाविद्यालय में आकर जाँच-पड़ताल करने लगा। एक दिन उसने 'खतरनाक हथियार' छिपाने के संदेह में विद्यालय की तलाशी ली, परन्तु उसे कुछ आपत्तिजनक वस्तु बरामद नहीं हुई। इसी दौरान एक पुलिस इंस्पेक्टर ने बताया कि हथियार गंगा में फेंक दिये गये हैं। फलतः मल्लाह बुलाये गये और चढ़ी हुई गंगा में भी खोज की गई, परन्तु सी.आई.डी. का यह प्रयास भी निष्फल सिद्ध हुआ। अंत में इस टीम ने मंदिर की तलाशी ली। मंदिर की तलाशी होने पर एक भरी हुई पिस्तौल और कुछ तोड़-फोड़ का सामान मिल गया। पुलिस ने सामान जब्त करके मौके पर गुलाबचन्द जैन, अमृतलाल जैन और घनश्यामदास जैन को गिरफ्तार कर लिया। 48
उपर्युक्त घटना से पूरे बनारस में यह खबर फैल गयी कि जैन महाविद्यालय के छात्र हथियारों का संग्रह भी रखते हैं। जैन महाविद्यालय का अधिकारी वर्ग भी छात्रों की सहायता करता था। विद्यालय के प्रधानाचार्य पंडित कैलाशचन्द्र जैन तथा मैनेजर पन्नालाल जैन आयुध और विस्फोटक पदार्थ नियम भंग तथा अन्य आपत्तिजनक मामलों में जेल गये, अपने विद्यार्थियों को जेल में पढ़ने के लिए पुस्तकें भेजते थे तथा मौका मिलने पर उन्हें महाविद्यालय का बना हुआ खाना भी भेजा जाता था। इस प्रकार स्याद्वाद जैन महाविद्यालय ने 'अगस्त क्रांति' में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी की।
बनारस के अमोलकचंद जैन और खुशालचन्द्र जैन ‘गोरावाला' इस क्रांति में
150 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान