________________
में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी की। उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार श्री जैन धारा 26 के अंतर्गत 16 अगस्त 1942 से 23 मार्च 1943 तक नजरबंद रहे। उन्हें आगरा के केन्द्रीय कारागार में रखा गया था, जो उस समय राजनीतिक बंदियों से ठसाठस भरा हुआ था। श्री जैन ने बंदी जीवन के दौरान कारागार में भी कैदियों को सदैव राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत किया।
मानिकचंद जैन ने पिछले आन्दोलनों की भाँति 1942 के आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया। सरकारी सम्पत्ति को नष्ट करने में उन्होंने अहम् भूमिका निभाई। तोड़-फोड़ के अपराध में पुलिस ने श्री जैन को गिरफ्तार करके कोतवाली में रखा और काफी यातनाएँ दी। पुलिस उनसे विस्फोटक पदार्थों के वितरण से सम्बन्धित जानकारी उगलवाना चाह रही थी, परन्तु श्री जैन ने कुछ न बताया। सभी प्रयत्नों के बाद पुलिस ने दफा 26 डी.आई.आर. में उन्हें 1 वर्ष के लिए नजरबंद कर दिया। उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार मानिकचन्द जैन मार्च 1943 से 9 नवम्बर 1943 तक नजरबंद रहे।
किशनलाल जैन ने भी इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया। 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्हें सरकार ने नजरबंद कर लिया था। 1942 में 9 अगस्त से पूर्व ही पुलिस ने क्रांतिकारी होने के कारण श्री जैन को हिरासत में ले लिया। उसके बाद उन्हें लगभग 2 साल तक आगरा और फतेहगढ़ जेलों में रखा गया। फिरोजाबाद आगरा निवासी रतनलाल जैन पुत्र राधाकिशन जैन ने इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल की सजा काटी। जेल में बीमार होने के कारण उन्हें अधिक समय कैद में नहीं रखा गया। श्री जैन ने 13 अगस्त 1942 से 1 जनवरी 1943 तक जेल की सजा भोगी। नंदकिशोर जैन आगरा के पुत्र विमलकुमार जैन ने भी इस आंदोलन में भागीदारी की। आगरा की तहसील किरावली के गाँव साधनखेड़ा निवासी उम्मेदीलाल जैन ने अपने साथियों के साथ इस आन्दोलन में भाग लेकर जेल यात्रा की।
आगरा के जैन समाज ने इस आन्दोलन के दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अंग्रेजी सरकार को कड़ा जवाब दिया। पूरे संयुक्त प्रान्त में यहाँ के जैन नागरिकों के माध्यम से अखबारों में ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की जाती थी। अगस्त क्रांति के दौरान सरकार ने भारतीय समाचार पत्रों पर पाबंदी लगानी प्रारम्भ कर दी, तब देशभक्तों ने साइक्लोस्टाइल मशीन से विभिन्न पत्रों का मुद्रण प्रारम्भ कर दिया। आगरा जिले में इस प्रकार के पत्रों में 'सिंहनाद', 'आगरा-समाचार', 'स्पेशल बुलेटिन', 'आगरा पंच', 'आजाद हिन्दुस्तान' आदि प्रमुख थे। कांग्रेस की
ओर से प्रकाशन विभाग की जिम्मेदारी महेन्द्र जैन को दी गयी। श्री जैन ने आगरा में ऐसा प्रबंध किया कि रातों-रात सरकार के खिलाफ समाचार पत्र तैयार किये जाते
132 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान