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समाचार के अनुसार 20 अप्रैल को भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् के मंत्री रतनलाल जैन (वकील) ने बिजनौर में नमक बनाया और भाषण भी दिया। उनके जत्थे का खूब स्वागत किया गया। 100 स्त्रियाँ भी दल में शामिल थीं। 125 रुपये की थैली उन्हें भेंट की गयी। नमक बनाने के बाद एक मजिस्ट्रेट ने उसे चखा। पश्चात् उनको उनके जत्थे सहित गिरफ्तार किया गया और उन्हें 1 वर्ष की सजा तथा 500 रुपये जुर्माना हुआ। उनके बाद बाबू नेमीशरण जैन भूतपूर्व सहमंत्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् ने भी यही कार्य किया और उनको भी उतना ही उपहार मिला। उनकी माता भी सत्याग्रह आन्दोलन में खूब कार्य कर रही है। 130
रतनलाल जैन को जिला कांग्रेस ने अपना प्रथम अधिनायक बनाया था। जिला कारागार बिजनौर के अनुसार उन्हें नौंवे नमक कानून की धारा 117 आई.पी. सी. के अंतर्गत 09.05.1930 को एक साल के लिए कैद की सजा हुई। कुछ दिन वे बिजनौर कारागार में रखे गये, उसके बाद 31.05.1930 को उन्हें गौंडा जिला जेल में स्थानांतरित किया गया। 1932 में बिजनौर के बाजार शम्भा में श्री जैन के नेतृत्व में एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में हजारों लोग उपस्थित थे। पुलिस ने इस दौरान काफी लोगों को गिरफ्तार किया।32 रतनलाल जैन ने बाजार शम्भा में जोरदार भाषण दिया, परन्तु आधे भाषण करने के बाद उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। जिला कारागार के अनुसार उन्हें 22.01.1932 को बिजनौर जेल में लाया गया और बाद में आई.जी.पी. नं. 5017/एच-46 के अनुसार 15.02.1932 को बरेली जेल स्थानांतरित किया गया। 3 वर्धमान पत्रिका में उल्लेख है कि श्री जैन ने इस आन्दोलन के दौरान 1 फरवरी, 1932 को बाजार शम्भा में भाषण दिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें 18 मास की कड़ी कैद तथा 700 रुपये जुर्माने की सजा मिली।
रतनलाल जैन की भाँति ही नेमिशरण जैन ने भी आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया। उन्होंने 1921 में कांग्रेस में प्रवेश किया था। उसके बाद से लगातार श्री जैन कांग्रेस के साथ खड़े रहे। नमक सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेने के कारण 1930 में 1 वर्ष कड़ी कैद और 500 रुपया जुर्माना तथा 1932 में 6 मास कैद और 400 रुपया जुर्माने की सजा उन्हें दी गयी। नेमिशरण जैन की माता दुर्गादेवी जैन ने भी आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया तथा सन् 1932 में 1 मास कड़ी कैद तथा 250 रुपया जुर्माना, पुनः सन् 1933 में 3 मास कड़ी कैद तथा 50 रुपया जुर्माना की सजा पायी।
बिजनौर क्षेत्र के आसपास के इलाकों में रहने वाले जैन समाज ने भी इस आन्दोलन में पूर्ण सहयोग दिया। नजीबाबाद (बिजनौर) के जैन समाज ने स्वदेशी प्रचार का बीड़ा उठाया। 'जैन मित्र' के तत्कालीन अंक के अनुसार-'नजीबाबाद के
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 109