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बाजार में 144 दफा लागू की गई है।102 उ.प्र. सरकार के सूचना विभाग के अनुसार विश्वंभरदास गार्गीय सन् 1930 में जाब्ता फौजदारी की धारा 107 के अंतर्गत 9 जुलाई 1930 से 3 सितम्बर, 1930 तक जेल में रहे। लक्ष्मीचंद जैन के बारे में उल्लेख है कि लक्ष्मीचंद झाँसी ने सन् 1931 के आन्दोलन में 8 माह कैद की सजा काटी।103
झाँसी में राजधर जैन ने कांग्रेस की कमान थामी तथा जैन समाज को ब्ड़ी संख्या में कांग्रेस का सदस्य बनाया। 'जैन संदेश' ने लिखा-भाई राजधर जैन पक्के कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं। सन् 1932 ई. में वे कांग्रेस में आये। खासतौर से झाँसी में कांग्रेस को मजबूत बनाने में श्री जैन का योगदान रहा। 1932 से लगातार आज तक श्री जैन ही यहाँ (झाँसी) की कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे हैं। इनके साथी बाबू शिवप्रसाद जैन ने भी आन्दोलनों में सक्रियता दिखायी। उनके द्वारा किये गये संघर्षों
। उल्लेख जैन संदेश के तत्कालीन अंकों में मिलता है। पत्र के अनुसार-शिवप्रसाद जैन नवयुवक कांग्रेस कार्यकर्ता हैं। वे क्रांतिकारी भावना के हैं। सन् 1934 ई. में श्री जैन कांग्रेस में आये। सन् 1937 ई. में यहाँ के जमींदार ने बेगार नहीं देने की वजह से किसानों को हर तरह से तंग किया। यहाँ तक कि जंगल से लकड़ी जलाने के लिए भी लाना बन्द कर दिया, उस वक्त शिवप्रसाद जैन ने 200 किसानों को साथ लेकर आबादी जंगल कटवा दिया। जंगल पर जागीरदार अपने सिपाहियों के साथ मय बन्दूकों के गया बाद में जागीरदार की तरफ से कलक्टर झाँसी को तार दिया गया, 4 दिन तक बराबर तहकीकात हुई। आखिर में उस वक्त कांग्रेस की जीत हुई।
झाँसी में एक राज्य 'बंका पहाड़ी' था। जो झाँसी मानिकपुर रेलवे स्टेशन मऊरानीपुर से गुरसराय रोड़ पर भसनेह से 4 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में पड़ता था। यह बुन्देलखण्ड की रियासतों में सबसे छोटा एक गाँव का ही राज्य था। इस राज्य की जनता ने स्वतंत्रता आन्दोलन की लहर से प्रभावित होकर अपने अधिकारों की माँग की, परन्तु राजा ने दमन नीति का सहारा लिया, जिससे राजा व प्रजा में संघर्ष बढ़ता रहा। यहाँ के निवासी पंचमलाल जैन ने जनता का नेतृत्व किया तथा राजा के विरुद्ध अनेक आन्दोलन किये। उनका जन्म ग्राम बंका पहाड़ी स्टेट में एक जैन परिवार में सन् 1897 में हुआ था। सन् 1927 में गाँधी विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने राज्य की कोठादारी पद से त्याग पत्र दे दिया और देश व जनता की सेवा में लग गये। सन् 1928 में उन्होंने राज्य की नीतियों तथा अत्याचारों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया तथा व्यापक आंदोलन किया। सन् 1929 में श्री जैन ने 14 किसानों को साथ लेकर नौगाँव के पॉलिटिकल एजेन्ट पर दबाव बनाया तथा राज्य के अत्याचारों तथा नीतियों से मुक्ति दिलाने के लिए अनेक प्रयत्न किये। उनके
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 103