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राष्ट्रीय नेताओं के परिश्रम का कुछ फल न मिला और अंग्रेजी सरकार ने उन्हें पूरे 5 साल जेल में रखा। मद्रास की वैल्लोर सेंट्रल जेल में सेठी जी को सरकार द्वारा इतना अधिक परेशान किया गया कि सन् 1921 में जब वे जेल से रिहा होकर देहली आये, तो उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ा हुआ था। इस स्थिति में भी वे असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए।
सेठी जी ने असहयोग आन्दोलन के दौरान 1 मार्च 1921 से लगातार 10 दिन तक आगरा में प्रवास किया। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में आगरा निवासियों ने विदेशी वस्त्र जला दिये। सन् 1923 में उनके युवा पुत्र प्रकाशचंद जैन की मृत्यु हो गयी, वह मात्र 25 साल के थे। इस शोक की घड़ी में भी उन्होंने पं. सुन्दरलाल का पत्र मिलते ही बम्बई जाकर कांग्रेस की सभा को सम्बोधित किया। अर्जुनलाल सेठी ने देश के लिए दिन-रात कार्य किया। उत्तर प्रदेश का तत्कालीन दैनिक पत्र 'आज' भी बराबर श्री सेठी से सम्बन्धित खबरों का प्रकाशन करता रहा।
'आज' ने अपने एक समाचार में लिखा-'श्री अर्जुनलाल सेठी ने यूरोप जाने के लिए पासपोर्ट बनाने हेतु दरखास्त दी थी, परन्तु प्रान्तीय सरकार ने बिना कोई कारण बताये पासपोर्ट देने से इन्कार कर दिया। बहुत दिनों तक जेल में रहने और पुत्र वियोग के कारण सेठी जी का स्वास्थ्य ऐसा बिगड़ गया है कि उसे सुधारने के लिए यूरोप जाना परमावश्यक है। उनका चेहरा देखने से यह मालूम हो जाता है कि उन्हें जलवायु परिवर्तन और पूरा आराम करने की बहुत जरूरत है। भारत में रहकर उन्हें आराम नहीं मिल सकता, क्योंकि राजनीतिक कार्य उनके लिए अन्न-जल की तरह अपरिहार्य हो गया है। सेठी जी जैसे देशभक्त के लिए यहाँ रहते हुए राजनीतिक कार्य का त्याग करना असंभव है। समुद्र यात्रा से उनके स्वास्थ्य में सुधार हो सकता था, परन्तु सरकार की मनमानी के कारण यह सम्भावना भी समाप्त हो गयी। यह नौकरशाही की ज्यादती है।'97 अर्जुनलाल सेठी का उत्तर प्रदेश से घनिष्ठ सम्बन्ध था और वे अजितप्रसाद जैन बह्मचारी सीतलप्रसाद. महात्मा भगवानदीन. सेठ अचलसिंह, अयोध्याप्रसाद गोयलीय आदि के कहने पर सदैव यहाँ आकर आन्दोलन की मजबूती हेतु कार्य करते थे। अजितप्रसाद जैन (लखनऊ) ने सदैव उनका साथ दिया। महात्मा भगवानदीन ने लिखा है कि अगर अजितप्रसाद जी सच्चे मन से सेठी जी का साथ न देते, तो सरकार न जाने कितने वर्ष पहले उन्हें फाँसी पर लटका चुकी होती।98
अजितप्रसाद जैन सदैव राजनीतिक मुकदमे निःशुल्क लड़ते थे। 9 अगस्त, 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने दल के साथ शाहजहाँपुर और लखनऊ के मध्य स्थित काकोरी स्टेशन पर ट्रेन डकैती डाली। इस डकैती में क्रांतिकारियों के हाथ
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 67