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पर बम फैक्ट्री की लम्बी तहकीकात के बाद सरकार ने 'दिल्ली षड्यंत्र केस' के नाम से एक ऐतिहासिक मुकदमा चलाया, जिसकी सुनवाई के लिए एल.एस. व्हाइट की अध्यक्षता में तीन जजों का एक स्पेशल ट्रिब्यूनल बनाया गया। यह केस काफी लम्बे समय तक चला। आँखों देखी गवाह होने के कारण अशरफी का बयान इस केस में अहम् था। अयोध्याप्रसाद गोयलीय जो स्वयं महान स्वतंत्रता सेनानी व लेखक थे, जेल से आने के बाद विमल जी के परिवार में मिलने आये, जब उन्हें रूपवती जैन से पता चला कि जमादारनी अशरफी का बयान इस केस में अहम् हैं, तो उन्होंने पुलिस की निगरानी से बचते हुए अशरफी के घर जाकर किसी तरह उसे समझाया तथा कहा कि जिस मकान में तुम काम करती थीं, वहाँ देश के महान क्रांतिकारी आजादी की तैयारी कर रहे थे। देश की सेवा के लिए तुम्हारा बयान भी काम आयेगा। अतः अशरफी मान गयी। जब गवाही का समय आया, तो अशरफी ने
बयान दिया कि मैं उस मकान में सफाई का काम करती थी। कौन-कौन उस मकान में रहता है, क्या करता है, मैं नहीं जानती, क्योंकि कमरों में जाने का मेरा कोई काम नहीं पड़ा। मुझे तो खाना बनाने वाली बहन भोजन दे दिया करती थी, न तो मैं
किसी का नाम जानती हूँ धनकुमार जैन
जुगमन्दरदास जैन
और न ही मैं उन्हें पहचान सकती हूँ।
__ अशरफी के बयान के कारण इतने बड़े संगीन मुकदमे की जड़ें हिल गई। इस केस की कार्यवाही 21 माह तक लगातार चली और फैक्ट्री के संचालन के आरोप में तीन व्यक्तियों के विरुद्ध विस्फोटक एक्ट में कार्यवाही की गयी र
1. डॉ. बाबूराम गुप्ता पुत्र झाझन मल, निवासी कासगंज, एटा 2. विमलप्रसाद जैन पुत्र बनारसीदास जैन सिसाना, बागपत (मेरठ) FOR 3. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन आत्मज हीरानन्द वात्स्यायन, लाहौर
दिल्ली षड़यंत्र केस में विमलप्रसाद जैन को 5 साल लम्बे कारावास की सजा मिली। बंदीनामा के अनुसार उन्हें 4 विस्फोटक एक्ट के अंतर्गत 22.07.1933 को 5 साल की कैद हुई। दिल्ली जेल में वे बन्दी संख्या 5592 के अंतर्गत बन्द रहे। लाहौर हाईकोर्ट में अपील करने पर विमलप्रसाद जैन की सजा दो वर्ष घटाकर तीन
86 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान