________________
छापकर किया। वे अपने गाँव में घर-घर राष्ट्रीय नेताओं के चित्र बाँटा करते थे। खुर्जा के सेठ मेवाराम जैन, छतारी के लाला घनश्याम सिंह जैन, जहांगीराबाद के चैनसुख जैन, जेवर के नत्थनलाल जैन आदि राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रहे। यद्यपि ये लोग जेल यात्रा नहीं कर सके, परन्तु प्रत्येक गतिविधियों में इनकी सक्रिय भागीदारी रही।
अलीगढ़ जनपद के जैन समाज में जैनेन्द्र कुमार, यशपाल जैन और अक्षय कुमार जैन प्रमुख रहे जिन्होंने इस आंदोलन में सक्रियता पूर्वक भाग लिया।
जैनेन्द्र कुमार नमक कानून तोड़नेवाले जत्थे में शामिल हुए। देश सेवा में उन्होंने कभी नाम नहीं चाहा, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमें निम्नांकित उदाहरण मिलता
सेठ मेवाराम, खुर्जा है-'सन् 1930 में महात्मा गाँधी का सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। उस समय यमुना के किनारे (दिल्ली) एक कैम्प लगा। उसमें यह निश्चय किया गया था कि जैनेन्द्र जी पहले जत्थे का नेतृत्व करेंगे। लेकिन उन्होंने इस बात को स्वीकार नहीं किया और कहा कि नेतृत्व किसी जाने-माने कांग्रेसी को करना चाहिए। मुझे यह अधिकार नहीं है कि मैं यह सम्मान प्राप्त करूँ। हाँ मैं जत्थे में स्वयंसेवक के रूप में नेताओं के अधीन चलने को तैयार हूँ।'45 उन्होंने सन् 1930 और 1932 के स्वतंत्रता संग्रामों में दो बार जेलयात्रा की। दिल्ली जेल में इनकी बंदी संख्या 5824 थी तथा जैनेन्द्र जी को भारतीय दण्ड संहिता 108 के तहत 18.07.1930 को 9 माह कैद की सजा दी गयी। 'बंदीनामा' के अनुसार जैनेन्द्र कुमार पुत्र प्यारेलाल जैन को धारा 17(2) क्रिमनल लॉ एक्ट के अंतर्गत 19.01.1932 को बंदी बनाया गया तथा 6 माह कैद हुई। इस प्रकार जैनेन्द्र कुमार ने जेल बंदी का जीवन बिताया। जेल जीवन के दौरान ही वे साहित्य सेवा की
ओर उन्मुख हो गये। कालान्तर में जैनेन्द्र कुमार ने अपनी वरद् लेखनी द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
_ जैनेन्द्र कुमार की भाँति ही यशपाल जैन भी गाँधीवादी विचारक रहे। 1935 में यशपाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने कालान्तर में गाँधी साहित्य की सर्वोत्कृष्ट संस्था 'सस्ता साहित्य मंडल' का भी संचालन किया।
अलीगढ़ जनपद के विजयगढ़ में जन्म लेनेवाले अक्षयकुमार जैन में बचपन से ही देश सेवा की लगन थी। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था-'मैं सन् 1930
मा लिगामा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 89