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अजितप्रसाद जैन के साथ एक दिन, रात के दो बजे से चार बजे तक इस समिति के कार्यकर्ताओं के साथ गस्त की थी।
- अजितप्रसाद जैन बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। लखनऊ स्थित उनका निवास अंग्रेज विरोधी कार्यों का हमेशा अड्डा बना रहा। राजस्थान के क्रांतिकारी नेता अर्जुनलाल सेठी (जैन) से उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था। अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में ‘वर्द्धमान जैन विद्यालय' की स्थापना की थी। इस विद्यालय के विद्यार्थियों को सेठी जी ने देश भक्ति का पाठ पढ़ाया। उनके संस्कारों के अनुरूप इन विद्यार्थियों ने भारत माता को अंग्रेजों के अजितप्रसाद जैन चंगुल से मुक्त कराने के लिए क्रांति का मार्ग चुना। इन र छात्रों में मोतीचंद जैन, मानिकचंद, जयचंद, विष्णुदत्त द्विवेदी और जोरावर सिंह प्रमुख थे। क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन की आवश्यकता थी। उन दिनों हथियार खरीदने के लिए क्रांतिकारी लोग राजनीतिक डकैतियों का सहारा लेते थे। अतः इन विद्यार्थियों ने भी धन प्राप्त करने हेतु बिहार में आरा जिले के अंतर्गत 'नीमेज' नामक स्थान पर स्थित एक आश्रम पर छापा मारा। छापे के दौरान हुए संघर्ष में आश्रम के महंत भगवानदास की मृत्यु हो गयी। महंत की अचानक मृत्यु होने के कारण क्रांतिकारियों को आश्रम में रखा धन का भंडार नहीं मिल पाया और वे निराश हो गये। इन क्रांतिकारियों ने अपना अगला निशाना जोधपुर
BEगानगर राज्य के अंतर्गत आने वाले एक आश्रम को बनाया। उस आश्रम का महंत बड़ी सम्पत्ति का मालिक था और वह हीरे-जवाहरातों को बाँस की एक पोली लाठी के अंदर छिपाकर रखता था। क्रांतिकारियों ने उस महंत से प्रार्थना की कि यदि आप हमको अपने पास के धन में से थोड़ा धन भी दे देंगे, तो भारतमाता को स्वतंत्र कराने के यश में आप भी साझेदार होंगे, परन्तु महंत न माना, विवश होकर क्रांतिकारियों को महंत के साथ बल प्रयोग करना पड़ा और उस संघर्ष में वह महंत भी चल बसा। क्रांतिकारियों ने उसकी लाठी को तोड़ा, पर उसके अंदर हीरे-जवाहरातों के स्थान पर कोयले निकले। हीरे-जवाहरात उसने पहले ही अन्यत्र छिपा दिये थे।88
अर्जुनलाल सेठी
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 65