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का समर्थन किया तथा ब्रिटिश सरकार के विरोध में प्रदर्शन किये। बड़ौत में कामताप्रसाद जैन अपने क्षेत्र का नेतृत्व करते थे। बड़ौत में श्री जैन ने प्रस्ताव रखा कि सरकार को 'कर' देना बंद किया जाये, क्योंकि केवल हिंसक तरीकों से सरकार को नहीं डराया जा सकता। यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ।" सूचना विभाग उ.प्र. के अनुसार-कामताप्रसाद जैन पुत्र होशियार सिंह (बड़ौत, जिला मेरठ) कांग्रेस के एक पुराने कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने 1930 में 6 मास कैद की सजा पायी, तथा छूटने के बाद पुनः उसी वर्ष नमक कानून के अंतर्गत 100 रुपये जुर्माने की सजा उन्हें मिली। बाद में वे दिल्ली-मेरठ दल के क्रांतिकारियों के साथ मिल गये।
_ उनका अपने इलाके में इतना अधिक प्रभाव था कि जब उनकी गिरफ्तारी हुई, तो घर-घर में उनके कार्यों की प्रशंसा की गयी। तत्कालीन समाचार पत्र 'हिन्दुस्तान' की एक खबर देखिये-सविनय अवज्ञा कमेटी मेरठ के वरिष्ठ सदस्य कामताप्रसाद जैन की गिरफ्तारी पर बड़ौत में पूरी हड़ताल रही। जब वे जेल से छूटकर आये, तो 'जैन मित्र' में समाचार प्रकाशित हुआ-'एक जैन कांग्रेस प्रमुख का स्वागत' (शीर्षक) कामताप्रसाद जैन सत्याग्रह युद्ध में 6 माह की जेल की कड़ी कैद को पार करके बाराबंकी जेल से 7 अक्टूबर को बड़ौत पधारे। करीब 2000 लोगों ने स्टेशन पर उनका स्वागत किया, जिसमें महिलाएँ भी थी। 50 घुड़सवार स्वदेशी झंडा लिये हुए थे। जुलूस नगर में घूमा। म्यूनिसिपल बोर्ड और कांग्रेस कमेटी ने श्री जैन को
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चर्खे का प्रचार-प्रचार गांधी जी का मूलमंत्र था
आधार
70 80 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान