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छपरौली में जैन समाज सुसम्पन्न है। सभी दाल रोटी से आनन्द में हैं, यानी कोई इतना मोहताज नहीं है, जो चर्खे पर ही अपना जीवन बसर करता हो, परन्तु वे तो गाँधी जी के निर्देशानुसार चर्खे चलाने में लगे हुए हैं। छपरौली के भगवानदास जैन 1930-31 के आन्दोलन में 6 मास जेल में रहे। छपरौली के सुमतप्रसाद जैन भी राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय रहे।
छपरौली की भाँति ही अमीनगर सराय के जैन समाज ने भी राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया। यहाँ आशाराम जैन ने जैन समाज का नेतृत्व किया और जेल गये। सूचना विभाग के अनुसार आशाराम जैन ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया
और सन् 1930 में 6 मास कैद और 500 रुपये जुर्माने की सजा पायी। नौज जिला मेरठ का इतिहास अनेक वीरों की गाथाओं से भरा है। जिनमें तहसील बागपत के गाँव सिसाना के महान् क्रांतिकारी विमलप्रसाद जैन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। श्री जैन की जीवनगाथा वीरता और अदम्य साहस के प्रसंगों से भरी हुई है।
8 अप्रैल, 1929 का दिन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। इस दिन राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सरकार द्वारा तैयार किये गये औद्योगिक विवाद विधेयक और
विमलप्रसाद जैन रूपवती जैन जनसुरक्षा विधेयकों का विरोध करने हेतु केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंके। केन्द्रीय असेम्बली में 8 अप्रैल, 1929 को जनसुरक्षा विधेयक बहुमत से पास हो चुका था। जैसे ही जॉर्ज शुस्टर ने घोषणा की, भगत सिंह दर्शक-दीर्घा में अपनी कुर्सी से उठे और गृहसदस्य (होम मेम्बर) की बेंच के पीछे की
ओर एक बम फेंका। बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका। दोनों ने 'इंकलाब जिन्दाबाद', 'ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद' और 'दुनिया के मजदूरों एक हो' के नारे लगाये।28
केन्द्रीय असेम्बली बम कांड की इस घटना से पूरे भारत में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उठने वाले आन्दोलन को बल मिला। इस महत्त्वपूर्ण घटना में बागपत के गाँव सिसाना निवासी विमलप्रसाद जैन का सहयोग रहा। श्री जैन की पत्नी रूपवती जैन ने भी इस कार्य में उनकी मदद की थी। 'श्रीमती रूपवती जैन न केवल एक क्रांतिकारी और देशभक्त महिला थी, बल्कि वह स्वयं क्रांति के प्रकरणों से सक्रिय होकर जुड़ी रही और अपने पति के कदम से कदम मिलाकर स्वाधीनता आन्दोलन
82 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान