________________
आश्रम' स्थापित किये। बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया। महिला कार्यकर्ताओं ने शराब की दुकानों के बाहर धरना दिया तथा घर-घर चर्खे चलवाये। भारतीय नागरिकों ने सरकार को 'कर' देना बंद कर दिया। सरकार के विरोध में सार्वजनिक सभाएं की गई । ब्रिटिश सरकार ने कार्यकर्ताओं का दमन करने हेतु उन पर गोलियाँ चलवाई, डंडे बरसाये, गिरफ्तारियाँ की, उनकी सम्पत्ति को जब्त किया, परन्तु उनका उत्साह कम नहीं हुआ ।
उत्तर प्रदेश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रारम्भ होते ही जनपद मुजफ्फरनगर में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की गई । जिसे 'कुँजा का आश्रम' कहा जाता था । यह स्थान वर्तमान में जी.टी. रोड पर चन्द्रा टाकीज के सामने पड़ता है। यह आश्र सत्याग्रहियों के एकत्रित होने तथा आंदोलन की रणनीति निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता था । आन्दोलन का कार्य करने वाले स्वयंसेवकों के ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था इस आश्रम में व्यवस्थित ढंग से की जाती थी । उलफतराय जैन भोजन व्यवस्था के प्रबन्धक थे। इस आश्रम से स्वयंसेवकों को तैयार करके नमक आन्दोलन के कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करने हेतु पूरे जिले में भेजा जाता था । मुजफ्फरनगर में नमक आन्दोलन की गतिविधियों में नेशनल स्कूल भी मुख्य केन्द्र रहा। काली नदी पर नमक बनाकर आन्दोलन का श्रीगणेश हुआ। जिसमें डॉ. बाबूराम गर्ग, सुमतप्रसाद जैन, उग्रसेन जैन, श्री केशवगुप्त आदि का सक्रिय योगदान रहा। इस आन्दोलन में जैन समाज को प्रेरित करने वाले सुमतप्रसाद जैन को कांग्रेस ने अपना चौथा अधिनायक चुना । श्री जैन शामली में हुए सत्याग्रह के भी प्रमुख थे। शामली उस समय सत्याग्रह का प्रमुख केन्द्र बन गया, जब पुलिस ने जबरदस्ती मकानों और दुकानों से झंडे उतरवाये तथा उन्हें थाने में रख लिया । हजारों स्वयंसेवकों ने जबरदस्त उत्साहपूर्वक आन्दोलन किया और अन्ततः भयंकर लाठीचार्ज तथा अपनी मनमानी करने के बाद मजबूर होकर पुलिस को उतारे हुए सभी झंडे वापस करने पड़े। इसी प्रकार जनपद मुजफ्फरनगर के अन्य स्थानों जलालाबाद, बुढ़ाना, जानसठ आदि में भी ब्रिटिश सरकार को कड़ी चुनौती दी गयी ।
जैन समाज ने इन सभी आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया । प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में ही जैन बन्धु इस आन्दोलन को सफल बनाने में लगे रहे । उग्रसेन जैन ने राष्ट्रीय कार्यों में अपना जीवन समर्पित कर दिया। श्री जैन ने सन् 1930 में 6 मास कैद तथा 1932 में 1 वर्ष कैद की सजा पायी । उग्रसेन जैन की चर्चा जैन समाज द्वारा प्रकाशित तत्कालीन समाचार-पत्रों में भी रहती थी । एक समाचार था- 'लाला उग्रसेन जैन ( सर्राफ ) छूटनेवाले हैं ।" इस प्रकार उनकी प्रत्येक गतिविधियों पर जैन समाज की नजर रहती थी तथा उनसे प्रेरणा लेकर कई जैन नवयुवक सत्याग्रह में सक्रिय हुए।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन और जैन समाज :: 77