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थे, परन्तु उन्होंने क्रांतिकारियों से मिलने का स्थान ' लक्ष्मणदास धर्मशाला' को ही चुन रखा था । 105
लाला फूलचन्द जैन अपने धन का उपयोग देशहित के कार्यों में करते थे । गणेशशंकर विद्यार्थी का पत्र 'दैनिक प्रताप', रमाशंकर अवस्थी का पत्र 'दैनिक वर्तमान' एवं अनेक समाचार पत्रों के प्रकाशन में वे आर्थिक सहयोग देते थे। 1923 से लगातार कई वर्षों तक फूलचन्द जैन कानपुर कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे । उनके नेतृत्व में कानपुर में अनेक राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए । 26 दिसम्बर से 28 दिसम्बर 1925 में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासभा के अधिवेशन में उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया । अपनी बड़ी टीम के साथ फूलचन्द जैन ने खाने-पीने की व्यवस्थाओं को सम्भाला। उनकी प्रशंसा करते हुए स्वयं गाँधी जी ने लिखा है, 'कानपुर में फूलचंद जैन नामक एक व्यापारी है, वह लोहे का व्यापार करते हैं। उनकी नम्रता की कोई सीमा नहीं है । उनको देखकर कोई भी उन्हें लक्षाधिपति न समझेगा बल्कि सामान्य मजदूरी करके पेट भरने वाला ही समझेगा, परन्तु रसोई के मद की आय में खर्च से जितनी भी कमी थी, उसे उन्होंने अपनी तरफ से पूरा करना स्वीकार करके अपनी ही देखरेख में सारी व्यवस्था की थी, न कभी उनका महासभा देखने के लिए दिल चला और न कभी प्रदर्शन देखने के लिए। वह तो सदैव अपने ही काम में लगे रहते थे। उन्होंने शहर में से ही परोसनेवालों का एक बड़ा संघ खड़ा किया था। महासभा में आये लोगों को वह इतने प्रेम और आग्रह से भोजन कराते थे, मानो वह अपने घर ही पर उन्हें खाना खिलाते हों ।' महासभा की अन्य व्यवस्थाओं में भी फूलचंद जैन ने अपना सहयोग किया । गाँधी जी ने उन्हें 'विशाल पुरुष' की उपाधि दी थी 17
बनारस में स्याद्वाद जैन महाविद्यालय ने असहयोग आन्दोलन के दौरान सक्रिय होकर कार्य किया। उस समय बनारस में अंग्रेजी पुलिस अपना मनमाना अत्याचार कर रही थी। इस बात की पुष्टि तत्कालीन पत्र 'आज' के द्वारा होती है । उसने लिखा, 'काशी की इस समय यह हालत है कि जो भी व्यक्ति खद्दर पहनकर निकलता है, उसी पर पुलिस शंका करने लगती है । अकारण ही पुलिस नागरिकों को पकड़कर थाने में बंद कर देती है । गाली देना या मार देना तो साधारण बात है । यह तो मानो अंग्रेजी पुलिस का जन्मसिद्ध अधिकार है। 8
इन विषम परिस्थितियों में भी जैन महाविद्यालय के छात्रों ने विदेशी कपड़ों की होली जलायी तथा सरकारी परीक्षाओं का बहिष्कार करने में अपना सहयोग दिया । अहिंसा और सत्याग्रह के आदर्शों से प्रेरित होकर छात्रों ने महाविद्यालय में स्वदेशी चीजों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं के प्रयोग पर पूर्णतः पाबंदी लगा दी। 109
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका
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