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का एक जत्था बनाकर बाजार की दुकानें बंद करा दी तथा 24 घंटे का उपवास रखा। इस प्रकार श्री जैन ने बचपन से ही स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था। बाद के सभी आन्दोलनों में उन्होंने लम्बी जेल यात्रायें की।
देवबन्द के बाबू ज्योतिप्रसाद जैन ने असहयोग आन्दोलन में अपने साथियों के साथ भाग लिया। उन्होंने देवबन्द में कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने के लिए दिन-रात कार्य किया। तिलक स्वराज्य फंड में उन्होंने चंदा एकत्रित कराया तथा जनसभाओं में अपने जोशीले भाषण दिये। जनसभाओं में बोलने की शुरूआत वे निम्न पंक्तियों से करते थे-'गावो सब स्वदेश गुणगान सोचो युक्ति वही जिसमें हो, जननी का उत्थान।' बाबू ज्योतिप्रसाद जनता को सम्बोधित करते हुए कहते थे, ‘भाई देशवालों जो सामान और कपड़ा तुम्हारे धन को चाटने का, तुम्हारे बाबु ज्योतिप्रसाद देश के भाइयों को निर्धन बनाकर भूखा मारने का
और तुमको आलसी, निर्धन, निरुत्साही और बनावट पसंद बनाने का कारण हो रहा है। उससे परहेज करो और उसे पहनना छोड़ो। उसके अंदर दरिद्रता और निर्धनता के परमाणु भरे हुए हैं, जो देश को अधो-गति में पहुंचा रहे हैं। उन्होंने अपने पत्र 'जैन प्रदीप' के माध्यम से भी देशसेवा की तथा अपनी मृत्यु पर्यन्त खादी पहनते
रहे। ताकि
की देवबन्द के जुगल किशोर जैन 'मुख्तार' जैन समाज के प्रमुख विद्वान और समाजसेवी थे। सन् 1920 से उन्होंने मृत्युपर्यन्त खादी वस्त्र पहने। गाँधी जी की पहली गिरफ्तारी पर उन्होंने यह व्रत लिया था कि जब तक महात्मा जी नहीं छूटेंगे, तब तक मैं बिना चर्खा चलाये भोजन नहीं करूंगा। वे सूत कातकर वह सूत संघ को प्रदान कर देते थे तथा उसके बदले मे खादी का कपड़ा बनवाते थे।
सहारनपुर के रामपुर मनिहारन कस्बे के जैन समाज जुगल किशोर मुख्तार ने भी असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी की। यहाँ
के लाला हुलासचन्द जैन 1917 से ही कांग्रेस में भाग लेने लगे थे। श्री जैन भारत सेवक समाज के सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने सन् 1922 में 'गया' कांग्रेस अधिवेशन में जिले के प्रतिनिधि के तौर पर भाग लिया और जिले
असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 61