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बनाया। जिला प्रशासन ने वाइसराय की बेगार करने के लिए शहर और देहाती क्षेत्रों से लोगों को एकत्रित करने का निर्णय लिया। प्रशासन के इस निर्णय का पता चलते ही बाबू झुम्मनलाल जैन, वैद्य रतन लाल चातक एवं हकीम पन्ना लाल ने बेगार प्रथा का सख्त विरोध किया। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर ग्रामीण लोगों से बेगार नहीं करने की अपील की, जिसके फलस्वरूप ग्रामीणों ने फसल काटने का बहाना बनाकर बेगार करने से इंकार कर दिया। थक-हार कर अंग्रेज अफसरों को कुलियों का सहारा लेना पड़ा।4 झुम्मनलाल जैन स्पष्ट वक्ता एवं पैने लेखक भी थे। उन्होंने सदैव निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा की।
असहयोग आन्दोलन के आरम्भ होने से पूर्व ही सहारनपुर निवासी अजितप्रसाद जैन में देशभक्ति की भावना जागृत हो गई थी। सन् 1917 में सहारनपुर में संयुक्त प्रांतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ. एम.एन. ओहदेदार ने की थी। इस अधिवेशन में नवयुवक जवाहरलाल नेहरु, खलीकुज्जमा और हरकरण नाथ मिश्र भी आये थे। अजित प्रसाद जैन ने अपने संस्मरण में उल्लेख किया है कि इस अधिवेशन में मैं स्वयंसेवक था और मुझे इन तीनों युवकों की सेवा का भार सौंपा गया था। इस प्रकार श्री
जवाहर लाल से मित्रता का वह सिलसिला शुरू हुआ, अजितप्रसाद जैन
जो उनकी मृत्युपर्यन्त रहा।750 अजितप्रसाद जैन के मन पर बचपन से ही अंग्रेजों की क्रूरता की छाप पड़ चुकी थी। उस समय अंग्रेजों द्वारा सेना में रंगरूटों की भर्ती की जा रही थी। सहारनपुर में एक अपराधी प्रवृत्ति के कुबड़े युवक ने सजा से बचने एवं रुपयों के लालच में सेना के लिए भर्ती करानी प्रारम्भ कर दी। एक दिन दोपहर बाद जब अजित प्रसाद स्कूल से लौट रहे थे, तो उन्होंने देखा कि वह कुबड़ा युवक अपने से दुगने लम्बे, गठे जिस्म के ग्रामीण से भिड़ा हुआ हैं इतने में ही वहाँ दो पुलिस वाले आये और उस ग्रामीण युवक को घेर कर ले गये। उसके बाद में उसका कोई पता न लग सका। उन्होंने इस सन्दर्भ में लिखा है-'इस घटना का मेरे दिल पर गहरा प्रभाव पड़ा और 50 वर्ष से अधिक बाद आज भी उस युवक की कातर दृष्टि, उसकी करूण पुकार तथा बेबसी की तस्वीर मेरी आँखों के सामने नाच उठती हैं।'
अजितप्रसाद जैन अपने मित्र खुरशेदलाल के साथ अध्ययन हेतु एस.एम. हाईस्कूल चंदौसी (उत्तर प्रदेश) में भर्ती हो गये। चंदौसी में उस समय रौलट एक्ट के विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे। 7 अप्रैल, 1918 की सुबह उन्होंने स्कूल के विद्यार्थियों
60 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान