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प्रत्येक गतिविधियों में अपना योगदान दिया। जो उ.प्र. सूचना विभाग के अनुसार अतरसेन जैन 142 आनन्दपुरी, मेरठ ने लोकमान्य तिलक से प्रेरणा लेकर सन् 1916 से राजनीतिक जीवन आरम्भ किया। श्री जैन सन् 1921 से 1928 तक कांग्रेस के महामंत्री, जिला कांग्रेस के सहायक मंत्री व प्रान्तीय कांग्रेस के सदस्य रहे। उन्होंने लम्बे समय तक जेलों की यात्रायें की। अतरसेन जैन ने कांग्रेस की नीतियों को घर-घर पहुँचाने के लिए 'देशभक्त' पत्र को माध्यम बनाया। सम्पादक के रूप में उन्होंने असहयोग आन्दोलन से प्रत्येक मेरठवासी को जोड़ने का प्रयास किया।
बाबू कीर्तिप्रसाद जैन मूलतः बिनौली (मेरठ) के रईस व जमीन्दार थे। सन् 1921 में उन्होंने वकालत छोड़कर मेरठ कांग्रेस के मंत्री का दायित्व ग्रहण करके असहयोग आन्दोलन में बहुत काम किया। 1926 में कीर्तिप्रसाद जैन गुजरानवाला (पंजाब) चले गये और वहाँ जैन गुरूकुल के अधिष्ठाता के रूप में कांग्रेस के आन्दोलनों में भाग लेने लगे। गुजरानवाला कांग्रेस कमेटी ने उन्हें War-Tribunal (युद्ध सम्बन्धी न्यायाधिकरण) का जज नियुक्त किया था, इसलिए 14
जुलाई को सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कीर्तिप्रसाद जैन काल कीर्तिप्रसाद जैन के भाई रिसालसिंह जैन ने भी असहयोग
आन्दोलन में सोत्साह भाग लिया। मा हस्तिनापुर (मेरठ) का ऋषभब्रह्मचर्याश्रम भी असहयोग आन्दोलन के दौरान देशसेवा में सक्रिय रहा। इस आश्रम की स्थापना 1 मई, 1911 को अक्षय तृतीया के दिन ऐलक पन्नालाल के आशीर्वाद से हुई थी। महात्मा भगवानदीन इस आश्रम के अधिष्ठाता हुए। उन्होंने गुरुकुल काँगड़ी के समान यहाँ के विद्यार्थियों को देश सेवा का पाठ पढ़ाया। अयोध्याप्रसाद गोयलीय ने लिखा है, 'महात्मा भगवानदीन हस्तिनापुर-आश्रम को गुरुकुल-काँगड़ी बना देने की धुन में स्टेशनमास्टरी को तिलांजलि दे आये।14
आश्रम की गतिविधियों पर सरकार की सन्देह दृष्टि थी। अजितप्रसाद जैन (लखनऊ) ने लिखा है-'जहाँ तक मुझे मालूम हुआ, एक पुलिस का जासूस आश्रम में अध्यापक के रूप में लगा हुआ था। आश्रम के विद्यार्थी विदेशी कपड़े का बहिष्कार, राष्ट्रीय गीतों का वाचन, मेरठ आये हुए नेताओं की सभाओं की व्यवस्था आदि कार्यों में सक्रिय भाग लेते थे। प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार ने भी इसी आश्रम में शिक्षा पायी थी। 'जैनेन्द्र' यह आश्रम का ही दिया हुआ नाम था, वास्तव
48 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान