Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ३३६-३५७ वर्ष
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास २८-प्राचार्य श्री कक्कसरि (पांचवां )
श्रेष्ठीत्यारव्य कुले तु लब्ध महिमः ककारव्यमूरिः कृती । आभारव्यानगरात्तु संघपतिना सार्धं ययौ पत्तने ॥ दीक्षां चाप्युपकेश पूर्वक पुरे संघं प्रति द्वन्द्विनः । जित्वा जैनमत प्रचार निपुणो गन्थान् बहून् निर्ममौ ।
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चायश्री ककसूरीश्वर प्ररवर धर्म प्रचारक जैन शासन के एक महान प्रभाविक श्राचार्य हुये आपके पवित्र जीवन के लिये पट्टावलीकार लिखते हैं कि पूर्व देश में धन धान्य पूर्ण श्राभापुरी नगरी थी। जहां जैनधर्म के कट्टर प्रचारक चतुर राजा चंद जैसे भूपति हो गये थे। अतः आभापुरी एक प्राचीन नगरी थी जहां ऊंचे ऊंचे
शिखर और सुवर्णमय कलस एवं ध्वजदंड से सुशोभित मन्दिर और अनेक धर्मशालायें थीं । बड़े २ धनाढ्य श्रावक सुखपूर्वक आत्मसाधना कर रहे थे उसमें श्रेष्ठि गोत्रिय वीर शाह धर्मण नाम का एक बड़ा भारी व्यापारी था आपके जेती नाम की भार्या थी आपके पूर्वज मरुधर से व्यपारार्थ आये थे पर व्यापार की बाहुल्यता के कारण आभापुरी को ही अपना निवास स्थान बना लिया। शाह धर्मण के ग्यारह पुत्र थे जिसमें कर्मा नाम का पुत्र बड़ा ही धर्मात्मा था। शाह धर्मण ने अपने जीवन में तीन बार तीर्थों का संघ निकाला। श्राभापुरी में एक आदीश्वर भगवान का मन्दिर बनाया संघ को तिलक करके पहिरामणी दी इत्यादि शुभकार्यों में लाखों द्रव्य व्यय किया । अन्त में अपने पुत्र कर्मा को घर का भार सोंप आप सम्मेतशिखर तीर्थ पर अनशन कर स्वर्ग में वास किया । पीछे कर्मा भी सुपुत्र था उसने अपने पिता की उज्ज्वल कीर्ति और धवलयश को खूब बढ़ाया था कारण कर्मा भी बड़ा ही उदार चित्त वाला था शुभकार्यों में अग्र भाग लेता था । शाह कर्मा ने अपने व्यापारिक व्यवसाय एवं व्यापार क्षेत्र को खूब विशाल बना दिया। केवल भारत में ही नहीं पर भारत के बाहर पाश्चात्य देशों के साथ भी कर्मा का व्यापार चलता था। साधर्मी भाइयों की ओर कर्मा का अधिक लक्ष्य था । शाह कर्मा के सात पुत्र और चार पुत्रियें थीं । शाह कर्मा देवगुरु का परम भक्त था, धर्म साधना में हमेशा तत्पर रहता था। उस जमाने की यही तो खूबी थी थी कि उनके पीछे इतना बड़ा कार्य लगा होने पर भी वे अपना जीवन बड़े ही संतोष में व्यतीत करते थे। इतना व्यवसाय होने पर भी वे एक धर्म को ही उपादेय समझते थे।
एक समय शाह कर्मा अर्द्ध निद्रा में सो रहा था कि रात्रि में देवी सच्चायिका आकर कर्मा को कह रही है कि कर्मा तू उपकेशपुर स्थित भगवान महावीर की यात्रा कर तुमको बड़ा भारी लाभ होगा। बस इतने में तो कर्मा की आँखें खुल गई । उसने सोचा कि यह कौन होगी कि मुझे सूचित करती है कि तू उपकेशपुर मंडन महावीर की यात्रा कर । खैर, शाहकर्मा ने बाद निद्रा नहीं ली । सुवह अपनी स्त्री और पुत्र वगैरह को एकत्रित कर रात्रि का सब हाल सुनाया । महान लाभ के नाम से सब सम्मत हो गये कि अपने
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