Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ७१०-७३६
या
ने
TAGRAAG
चड़ा
अजीत.
थाना
६-पाल्हिकापुरी के चिंचट गो. __ शाह साना ने ऋषभ० मन्दिर प्रतिष्ठा ७-कोरेटपुर के चरड़ गो. ८--चन्द्रावती के भूरि गो० जैसल ने शान्त ९--शिवपुरी के भाद्र गो , जोजर ने पार्श्व १०-टेलीग्राम के मल्ल गो० , नाथा ने सुपार्श्व ११-नन्दपुर के सुघड़ गो० आदू
चंद्र० १२- ब्राह्यणपुर के कुमट गो० ओटा ने धर्मनाथ १३-विजयपुर के कनौजिया० गेदा ने महावीर १४-देवपतन के तप्तभट्ट
डूडमल ने १५-पंचासरा के लधुश्शेष्टि
धीरा ने पार्श्व० १६-पोतनपुर के डिडू गो०
धंधला ने १७-रत्नपुर के पोकरणा. १८-हुनपुर के लुंग
चोला ने आदीश्वर ५९-चपटनगर के अष्टि०
छाजू ने २०-सागापुर के श्रष्टि गो० चहाड़ ने महावीर २१-श्रीनगर के बलाह गो० तोला ने २२-बावला के प्राग्वट वंशी २३-कलकोड़ी के प्राग्वट वंशी , देदा ने पार्श्व २४-खेडीपुर के श्रीमाल वंशी , देपाल ने २५-खोखड़ के श्रीमाल वंशी , जोजा ने २६-खीजुरी के श्री श्रीमाल गो०, नागडा ने पार्श्व २७-हेमड़ी के सुघड़ गो० , पेथा ने चोमुख २८-दानीपुर के सोमांवत , फूवा ने। पाव २०-दुजाणा के कुमट गो० , सारंग ने महावीर ३०-वसावती के बाप्पनाग० , सलखण ने , ३१-फूसीग्राम के आदित्यनाग , सूढ़ा ने , ३२-नागपुर के श्रष्टि गो० , महादेव ने पार्श्व ३३-शाकम्भरी के लुंग गो० , धनदेव ने पार्श्व
पट्ट सतावीस यक्षदेव गुरु, भूरिगोत्र दिपाया था ।
तप जप ज्ञान अपूर्व करके, जैन झण्ड फहराया था । संघ चतुर्विध केथे नायक, सुरनर शीश झुकाते थे।
सुन करके उपदेश गुरु का, मुमुक्ष दीक्षा पाते थे। ॥ इति श्री भगवान पार्श्वनाथ के ६७ वें पट्टपर आचार्य यक्षदेवसूरि महाप्रभाविक आचार्य हुये ॥ सूरीश्वरजी के शासन में मन्दिरों की प्रतिष्टाएँ ]
७६३
चन्द्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org