________________
तो खुद मुक्ति के आनंद में रहता है। यह तो, 'मैं उद्वेग में फँस गया' अज्ञानता से अपने आप पर ऐसा लेते ही वास्तव में खुद फँस जाता है!
उद्वेग करवाने वाला कौन है? बुद्धि। वही वेग में से आवेग में और उद्वेग में लाती है और बुद्धि ही शंकाओं को जन्म देती है।
बुद्धि की शक्ति से हल नहीं मिलने से उलझ जाता है, वह फिर शंकाएँ उत्पन्न करवाती है। शंका अर्थात् घोर अज्ञानता।
अक्रम विज्ञान में, शंका की प्रकृति से बचने के लिए 'व्यवस्थित' की निःशंक दशा में स्थिर रहने की वैज्ञानिक समझ ज्ञानीपुरुष द्वारा आज्ञा के रूप में प्राप्त होती है।
घर में साँप घुसा, उस वजह से जो शंका घुसी, वह शंका, जब तक साँप को घर में से बाहर जाते हुए नहीं देख लें, तब तक शंका का कीड़ा शांत नहीं होता और जब 'व्यवस्थित' का ज्ञान समझ में आ जाए, तब वहाँ पर शंका उत्पन्न ही नहीं होती।
ज्ञानी के श्रीमुख से प्रकट हुआ विज्ञान तो अनेक जन्मों के अनुभवों के पृथक्करण का निचोड़ है। अनेक प्रकृतियों के प्रत्येक पर्यायों में से अनुभवपूर्वक गुजरने के बाद प्राप्त होने वाला मुक्ति का मूल ज्ञान, वह खोज है ज्ञानीपुरुष की!
मनुष्यों के जीवन में कितनी ही घटनाएँ ऐसी हो जाती हैं कि उनमें जो होता है, वहाँ उसे शंका होती ही नहीं है। जहाँ कुदरती रूप से सब हो रहा है वहाँ शंका किसलिए? भोजन खाने के बाद उसके पचने के बारे में शंका होती है कि पचेगा या नहीं?
___ शंका क्या हैल्प करती है? शंकाशील तो जीवित होते हुए भी मत जैसी स्थिति में ही रहता है। बेटियाँ पढ़ने जाएँ, और उन पर शंका रखे तो क्या होगा? वह शंका तो सिर्फ अजंपा (अशांति) करवाएगी। वह खुद के लिए ही दुःखदाई है।
किसी के चारित्र से संबंधित शंका करना तो भयंकर जोखिम है। ऐसा जोखिम कैसे मोल लिया जा सकता है? जब तक देखा नहीं हो
15