Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययोधिनी टीका स्.२ महावीरस्यामिवन्दनकारणप्रदर्शनम् २३ तत्र द्रव्यरत्नानि वैडूर्यमरकतेन्द्रनीलादीनि, भावरत्नानि च श्रुतव्रतादीनि, तत्र द्रव्यरत्नानि न तात्त्विकानि इति भावरत्नरिहाधिकारः, श्रुतान्येव रत्नानि श्रुतरत्नानि, न तु श्रुतानि च रत्नानि चेति, निधानमिव निधानम् , श्रुतरत्नानां निधानं श्रुतरत्ननिधानम्, केषां प्रज्ञापना क्रियते इत्यत आह-सर्वभावानाम् सर्वे च ते भावाश्चेति सर्वभावाः जीवाजीवपुण्यपापाश्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षाः, तथाहि-अस्यां प्रज्ञापनाया षटूत्रिंशत्पदानि सन्ति, तत्र प्रज्ञापना (१) बहुवक्तव्य (३) विशेष (५) चरम (१०) परिणाम (१३) संज्ञेषु पञ्चसु पदेषु जीवाऽजीवानां प्रज्ञापना, प्रयोगपदे (१६) क्रियापदे (२२) चाश्रवस्य, कायवाङ्मनः कर्मयोगः आश्रवः, कर्मप्रकृति पदे (२३) बन्धस्य, समुद्घातपदे (३६) केवलिसमुद्घातप्ररूपणायां संवरनिर्जरामोक्षाणां त्रयाणाम्, शेषेषु च स्थानादिषु (२) पदेषु क्वचित् कस्यचित्, अथवा सर्वमावानां तथा व्रत आदि भाव रत्न हैं । द्रव्य रत्न वास्तविक नहीं, उत यहां माव रत्न समझना चाहिए श्रुत रत्न का अर्थ है, श्रुत रूप रत्न, श्रुत और रत्न, ऐसा अर्थ नहीं समझना चाहिए।
प्रज्ञापना किसकी की जाती है इसका उत्तर है सर्व भावों की जीय, अजीव, पुण्य, पाप, आप्रव, संवर बन्ध, निर्जरा और मोक्ष, ये भाव है । इस प्रज्ञापना सूत्र में छत्तीस पद में हैं, वे इस प्रकार हैं ___ (१) मज्ञापना (३) बहु वक्तव्य (५) विशेष (११) चरम और (१३) परिणाम इस पांच पदों में जीव और अजीच की प्रज्ञापना है। (१६) प्रयोग पद और (२२) क्रियापद में आश्रय की (२३) कर्म प्रकृतिपद में बन्ध की (३६) समुद्घात पद में केयली समुद्घात की प्ररूपणा में संबर निर्जरा और मोक्ष की, शेष स्थान आदि पदों में कहीं किसी की દ્રવ્ય રત્નો છે અને શ્રુત તથા વ્રત આદિ ભાવરત્ન છે. દ્રવ્યરત્ન વાસ્તવિક નથી, તેથી અહીં ભાવરત્ન સમજવાના છે. શ્રતરત્નને અર્થ છે, મૃતરૂપ રત્ન, શ્રુત અને રત્ન એવો અર્થ ન સમજ જોઈએ.
પ્રજ્ઞાપના કેની કરાય ? એને ઉત્તર છે–સર્વભાવની. જીવ અજીવ પુણ્ય पा५, माश्रव, सव२, अन्ध, निर्ग२अने भाक्ष, २ मा छे. ॥ प्रज्ञापना सूत्र छत्रीस ५ोमा छे. ते २प्रारे छे-(१) प्रज्ञापना, (3) मई पतव्य (५) विशेष (११) २२. अने. (१३) परिणाम 20 पाय पहोमा १ भने २७पनी प्रज्ञापन छे. (१६) प्रयो॥५६ अने (२२) या ५४मां 241શ્રવની (૨૩) કર્મ પ્રકૃતિ પદમાં બન્દની (૩૬) સમુદુઘાત પદમાં કેવલી સમુદ્દઘાતની પ્રરૂપણામાં સંવર નિર્જરા અને મેક્ષના શેષ સ્થાન વિગેરે પદે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧