Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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उनका अन्तर, द्वीप और समुद्र के प्रदेशों का स्पर्श और परस्पर में जीवोत्पत्ति, नाम का हेतु, पद्म और महापद्म वृक्ष, पद्म और पुंडरीक देवों की स्थिति तथा इस द्वीप के चन्द्र सूर्य-ग्रह-नक्षत्र और तारागणों की संख्या आदि का वर्णन
मानुषोत्तरपर्वत बीच में आ जाने से इस द्वीप के दो विभाग हो गये हैं। जंबूद्वीप, धातकीखण्ड और अर्ध पुष्करवरद्वीप को अढाई द्वीप, मनुष्यक्षेत्र अथवा समयक्षेत्र कहते हैं । समयक्षेत्र का आयाम विष्कंभ, परिधि, मनुष्यक्षेत्र के नाम का कारण तथा चन्द्र सूर्यादि का वर्णन है।
मनुष्य लोक और उसके बाहर ताराओं की गति आदि, मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई, पर्वत के नाम का कारण, लोकसीमा के अनेक विकल्प, मनुष्यक्षेत्र में चन्द्रादि ज्योतिष्क देवों की मण्डलाकार गति, इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन, इन्द्र का विरह काल, पुष्करोदधि का संस्थान, चक्रवाल विष्कंभ परिधि, चार द्वार, उनका अन्तर, द्वीप समुद्र में जीवों की परस्पर उत्पत्ति आदि का कथन किया गया है।
इसके पश्चात् वरुणवर द्वीप, वरुणवर समुद्र, क्षीरवर द्वीप, क्षीरोदसागर, घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, क्षोदवर द्वीप-क्षोदवर समुद्र, नन्दीश्वर द्वीप-नन्दीश्वर समुद्र आदि असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं और अन्त में असंख्यात योजन विस्तृत स्वयंभूरमण समुद्र है, ऐसा कथन किया गया है। लवणसमुद्र से लगाकर कालोद, पुष्करोद वरुणोद, क्षोरोद, घृतोद, क्षोदोद तथा शेष समुद्रों के जल का आस्वाद बताया गया है। प्रकृति-रसवाले चार समुद्र, उदगरसवाले तीन समुद्र, बहुत कच्छ मच्छ वाले तीन समुद्र, शेष समुद्र अल्पमच्छ वाले कहे गये हैं। समुद्र के मत्स्यों की कुलकोटि, अवगाहना आदि का वर्णन है।
देवों की दिव्य गति, बाह्य पुद्गलों के ग्रहण से ही विकुर्वणा, देव के वैक्रिय शरीर को छद्मस्थ नहीं देख सकता, बालक का छेदन-भेदन किये बिना बालक को छोटा-बड़ा करने का सामर्थ्य देव में होता है, यह वर्णन किया गया है।
चन्द्र और सूर्यों के नीचे, बीच में और ऊपर रहने वाले ताराओं का वर्णन, प्रत्येक चन्द्र सूर्य के परिवार का प्रमाण, जंबूद्वीप के मेरु से ज्योतिष्क देवों की गति का अन्तर, लोकान्त में ज्योतिष्क देवों की गति-क्षेत्र का अन्तर, रत्नप्रभा के ऊपरी भाग से ताराओं का, सूर्यविमान का चन्द्रविमान का और सबसे ऊपर के तारे के विमान का अन्तर भी बताया गया है।
इसी प्रकार अधोवर्ती तारे से सूर्य चन्द्र और सर्वोपरि तारे का अन्तर, जंबूद्वीप में सर्वाभ्यन्तर, सर्व बाह्य, सर्वोपरि सर्व अधो गति करने वाले नक्षत्रों का वर्णन, चन्द्र विमान यावत् तारा विमान का विष्कंभ, परिधि, चन्द्रसूर्य-ग्रह-नक्षत्रों के विमानों को परिवहन करने वाले देवों की संख्या, चन्द्रादि की गति, अग्रमहिषियाँ, उनकी विकुर्वणा आदि का वर्णन भी किया गया है।
वैमानिक देवों का वर्णन-वैमानिक देवों का वर्णन करते हुए शक्रेन्द्र की तीन परिषद्, उनके देवों की संख्या, स्थिति, यावत् अच्युतेन्द्र की तीन परिषद् आदि का वर्णन है। अहमिन्द्र गैवेयक व अनुत्तर विमान के देवों का वर्णन है। सौधर्म-ईशान से लेकर अनुत्तर विमानों का आधार, बाहल्य, संस्थान, ऊंचाई, आयाम, विष्कंभ, परिधि, वर्ण, प्रभा, गंध और स्पर्श का उल्लेख किया गया है।
सर्व विमानों की पौद्गलिक रचना, जीवों और पुद्गलों का चयोपचय, जीवों की उत्पत्ति का भिन्न-भिन्न क्रम, सर्व जीवों से सर्वथा रिक्त न होना, देवों की भिन्न भिन्न अवगाहना का वर्णन है। ग्रैवेयक और अनुत्तर देवों में
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