Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ . २ पुद्गलभेदनिरूपणम् च्छिमचतुष्पदस्थलचरतिर्यग्योनिकप चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः, गर्भव्युत्क्रान्ति-क चतुष्पदस्थलचरतिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणता च । एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुबिहा पण्णत्ता' एवम् चतुष्पदस्थलचर तिर्यग्योनिकवदेव एतेन अभिलापेन=उपर्युक्ताभिलायकक्रमेण परिसर्पाः परिसर्पस्थलचरतिर्यग्योनिकपंचेन्द्रिययोगपरिणता अपि पुद्गलाः द्विधाः प्रज्ञप्ताः, ताने वाह - 'तं जहा 'तद्यथा - ' उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य उरः परिसर्पाश्चि, उरसा वक्षःस्थलेन परिसर्पन्ति गच्छन्तीति उरः परिसर्पाः सर्पादयः, भुजपरिसर्पाश्च, भुजाभ्यां परिसर्पन्तीति भुजपरिसर्पाः गोधानकुलादयः । ' उरपरिसप्पा दुविहा पण्णत्ता' उः परिसर्पाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा ' तद्यथा - 'संमुच्छिमा य, गव्भवक्कंप्पयथलयर ०' संमूच्छिम चतुष्पद् स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रयोग परिणत एवं गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रयोग परिणत पुद्गल 'एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता' चतुष्पद स्थलचर तिर्यग्योनिक की तरह ही इस उपर्युक्त अभिलापक्रम से परिसर्प स्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक प्रयोग परिणत भी पुद्गल दो प्रकारके कहे गये हैं । 'तंजहा' जो इस प्रकार से हैं । ' उरपरिसप्पाय भुयपरिसप्पाय' एक उरः परिसर्प दूसरा भुज परिसर्प उरः परिसर्प वक्षस्थलसे सरकते हैं जसे सर्प आदि, और भुजपरिसर्प भुजाओंके बलसे चलते हैं जैसे गोधा नकुल आदि इनमें 'उरपरिसप्पा दुविहा पण्णत्ता' उरः परिसर्प दो प्रकार के कहे गये हैं 'तंजहा' जो इस प्रकार से हैं 'संमुच्छिमाय गन्भव'संमुच्छिम चउप्पयथलयर ०, गव्भवक्कतिय चउप्पय थलयर ० ' [१] संभूछिंग ચતુષ્પદ સ્થલચર તિય ચયનિક પંચેન્દ્રિયપ્રયાગપરિણત પુદગલ અને [૨] ગર્ભવ્યુત્ક્રાતિક [गर्भन] यतुष्यद्द स्थटायर तिर्यथयो नि येन्द्रिय अयोगपरित पुहगत 'एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता' तुष्य स्थसयर तिर्यययोनिउनी भन ઉપયુ કત અભિલાપક્રમે પરિસ સ્થલચર તિય ચયાનિક પંચેન્દ્રિય પ્રયાગપરિણત युगसोना पशु मे अक्षर छे. 'तंजहा' ते मे प्रभर प्रमाणे छे- 'उरपरिसप्पाय भुपरिसप्पा' [1] ३२: परिसर्प भने [२] ४ परिसर्प सर्प महिने २ः परिसर्प સ્થલચર કહે છે, તે છાતીથી સરકે છે. એક જાતની ઘેા, નાળિયા આદિને ભુજરિસપ हे छे. तेथे। लुभगोना मजथी सरडे छे. 'उरपरिसप्पा दुविधा पण्णत्ता - तंजहा - ' âniel Ge: ulkuyaı à unà Nà ung sai d- ‘g'gfan1 4, qÕHI
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬