Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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देवछे ?
आरागचन्द्र-जिनागमसंप
शतक १. - परिचयः
१५. नपिटदेवतानमस्कारो मङ्गलार्थो भवति न च श्रुतमिष्टदेवतेति कथमयं मङ्गलार्थः इति अप्रोच्यते श्रुतमष्टदेवतेय. १५. शंकाः - इष्टदेवताने करेलो नमस्कार मंगलमाटे होइ शके छे अने द्वादशांगीरूप श्रुत तो इष्ट देवता नथी, तो ते श्रुतने करेलो आ नमस्कार मंगलमारे केम होइ शके १. समा० - अप कहीए डीए- खुत सिद्धनी पेटे, अर्हतो नमस्करणीय होवाची देवता ज छे.
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पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपचाया, पुण बोहिलाभो, अंतकिरियाओ अ आघविज्जंति. x x x x x छ अंगे दो सुअक्खंधा, एगूणतीसं अज्झयणा, ते समासओ दुबिहा पण्णत्ता, तंजहा, चरिता य कपिआ अ; दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए भम्मकाए पंच पंच अवसादसदाई, एयमेगाइ अक्साइआए पंच पंच उपसादआसयाई, एगगाए उबक्साइआए पंच पंच अक्खाइअउवक्खाइअसयाई, एवामेव सपुव्वावरेण अडाए अक्खाइ अकोडीओ भवतीतिमक्खायाओ, एगूणतीसं उद्देसणकाला, एगूणतीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साई.
उपाराकदशाः उपासगदसामु उवासवाणं नगराई उद्यालाई नेहवाई, मणसंडा, रावाणो, अम्मापियरो, समोसरभाई, पम्मायरिया धम्मकाओ इहलोइअ-परलोइअइनिविसेसा; उवासयाणं सीलव्वय - वेरमण - गुणपञ्चक्खाण - पोसहोदवासपडिवज्जिआओ, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणा, भत्तपञ्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चाया पुणो बोहिलाभो अंतकिरियाओ आघविज्जंति. x X X X X x सत्तमे अंगे एगे सुअक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्दे सणकाला, संजजाई पयसयसहस्साइं
अन्तकृदुदशा:-( अंतगढदशा) अंतगढदसा वं अंतगडा नगराई उमाण पेलवणराया अम्मासमोर धमाधम्मका परवसा, भोगपरिचाया, पबचाओ, सुपरिग्गदा, सोवदागाई, पविमाओ बहुविहाओ खमा, अयं मह सोमं च सपसहि सत्तरसविदों जमो, उत्तमं च मे अकिंचना तवो किरियाओ समिती व अप्पमायजोगो, सज्झायज्झामेण व उत्तमार्ग दोई पि लक्खणाई, पताण व संजम जिअपरीहार्ण, चम्म्मम्म स संभो परिवाओ जति म जद्द पालिको यो पावोचनओय जाहे जतिपाणि तानि दत्ता अंतगड मुनिवरो, रामस्योषविमुको मुखमणंतरच पत्ता एए अत्रेय एवनाइत्य मित्यरेण प X X X X xx अटुमे अंगे एगे,
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अक्ष दस अायणा, सत्यम्गा दस उद्देशकाला दस समुगाला संाईपसहस्साई
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अनुत्तरोपपातिकदशाः – अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोववाइआणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआई, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाई, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोग-परलोअडविलेसा, भोगपरिचाया, पवनाओ, सुअपरिग्वा तमोवहाणाई, परिवायो, पडिनाओ संलेहणाओ, भत्त- पाणपञ्चक्खाणाई, पावोवगमणाई, अणुत्तरोववाओ, सुकुलपन्चाया, पुणो बोहिलाहो अंतकिरियाओ आघविनंति X X xxx नवमे अंगे एगे सुअक्खंधे, दस अज्झयणा, तिण्णि बग्गा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेजाइं परावसहस्ताई.
प्रश्नव्याकरणः—पण्हावागरणेसु अद्भुत्तरं पसिणसयं, अनुत्तरं अपसिणसयं, अद्भुत्तरं पसिणापसिणसयं, विज्जाइसया, नाग-सुवनहिं सद्धिं दिव्वा संवाया. आघविज्जंति. विम्हयकराणं; अइसयमइअकालदमसमतित्थ करुत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं, दुरहिगमदुरवगाहस्स सव्वसव्वण्णुसम्म अस्स, अबुहजणबोहकरस्स, पच्चक्खपचयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीआ आघविनंति. × × × × × दसमे अंगे एगे सुअक्खंधे, पणयाली उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्दे सणकाला, संखेज्जाणि पयसहस्साणि.
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विपाकश्रुतः - विवागसुए णं सुक्कड - दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जंति, से समासओ दुविहे पण्णत्ते, तं जहा; दुहविवागे सुहविवागे चैव तत्थ जं दस दुहविवागाणि, दस सुहविवागाणि; से किं तं दुहविवागाणि ?, दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआई, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाई, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, नगरगमणाई संसारपबंधे, दुहपरंपराओ य आघविज्वंति सेत्तं दुहविबागाणि. से किं तं सुहविवागाणि ?, सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआई, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाई, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोअ-परलोअइडिविसेसा, भोगपरिश्चाया, पव्वज्जाओ, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, परियागा, पडिमाओ, संलेहणाओ, भत्तपाणपच्चक्खाणाई, पावोवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चाया, पुण वोहिलाहो अंतकिरियाओ आघविनंति x x x x x x x एकारसमे अंगे वीर्य अक्षयणा यी उद्देणकाला बी समुद्देणकाला बाई पवसवसहस्साई दृष्टिवादः दिहिवाएं णं सम्यभावपरूनच्या आषधिनीति से समास पंच पण तं जड़ाः परिकम्बं सुताई, पुरुवरायं, अणुभोगो, ठिमा समवायांग सूत्र - (क० आ० ) १ - १६७ थी १९७. अनु०
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पूर्वोक्त विषय:- पदपरिमाणादि कालवशतो न्यूनमिदानींतनसूत्रेषु इति वृद्धाः
१. 'समवायांग सूजगत द्वादशांगीनो परिचय पीने नहीं आ प्रमाणे उद्धृत करेगे -
आचारांगः–आचारांगमां प्ररूपेला विषयो नीचे प्रमाणे छे:— श्रमणनिर्ग्रथोनो सुप्रशस्त आचार, गोचर ( भिक्षा लेवानो विधि ) विनय, वैनयिक, कायोत्सर्गादिस्थान वायादिगमन पटले शरीरको श्रम दूर करना उपाधयतिरमा यमन, आहारादि पदार्थों आप साध्यायादिमां नियोग, भाषासमिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त, पान, उद्गमादि ( उद्गम, उत्पाद अने एषणा ) दोषोनी विशुद्धि, शुद्धाशुद्धप्रहण, मत, नियम, तप अने उपधान प्रथम ( आचारांग ) अंगमां के तस्कंध, पचीस अध्ययन, पंचाशी उद्देशनाल, पंचाशी समुद्देशनाल तथा अटार हजार पदो छे. सूत्रकृतः - 'सूत्रकृतांग' ( सूअगडांग ) मां प्ररूपेला विषयो नीचे प्रमाणे छेः खसिद्धांत, परसिद्धांत, व अने परसिद्धांत, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक
अलोक, लोकालोक, जीव्र, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष सुधीना पदार्थो, इतर दर्शनथी मोहित, संदिग्ध नवा दीक्षितनी बुद्धिनी शुद्धिमाटे एकसो एंशी क्रियावादिना मत, चोराशी अक्रियावादिना मत, सडसठ अज्ञानवादिना मत, बनीश विनयवादिना
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