Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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शतक १.-परिचयः
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रति भगवतीसूत्र. विषयो नवमः, 'कथं भदन्त! जीवा गुरुकत्वमागच्छन्ति' ? इत्यादि च सूत्रमस्य. चः समुच्चयार्थः, 'चलणाओ'त्ति बहुवचननिर्देशाच्चलनाद्या दशमोद्देशकस्यार्थाः, तत्सूत्रं चैवम्:-'अन्ययूथिका भदन्त ! एवमाख्यान्तिः-चलन अचलितम्' इत्यादि. इति प्रथमशतोदेशकसंग्रहणीगाथार्थः.
जोके उपर्यत चाल गाथानो अर्थ वक्ष्यमाण-ते ते दश-उद्देशकनुं ज्ञान थया पछी स्वयमेव जणाय तेम छे, तोपण बालजीवोना सुखाव उदेशकविषयःबोध माटे ते अर्थ कहीए छीए. तेमां ['रायगिह 'त्ति] भगवान् श्रीमहावीरे राजगृह नगरमा वक्ष्यमाण दशे उद्देशकनो अर्थ दर्शाव्यो छे. एप्रमाणे व्याख्याकरवी. एप्रमाणे बीजे (लुप्सविभक्तिवाळु पद होय त्यां) पण ( ते पदने माटे) इष्ट विभक्त्यन्तपणुं जाणी लेवु. 'चलण 'त्ति ] चलनविषयक पहेलो उद्देशक 'चालत ए चाल्यु' इत्यादि अर्थना निर्णय माटे छे. [ 'दुक्खे' त्ति ] दुःखविषयक बीजो उद्देशक 'हे भगवन् ! पोते करेल दःखने जीव वेदे छे' इत्यादि प्रचना निर्णय माटे छे. [ 'कंखपओसे' ये त्ति] मिथ्यात्वमोहनीयना उदयथी उत्पन्न थयेलो अने अन्य अन्य दर्शनना ग्रहण करवारूप जीवनो जे परिणाम ते कांक्षा; तेज मोटुं जीवर्नु दूषण ते कांक्षाप्रदोष; तेना विषयवाळो बीजो उद्देशो 'हे भगवन् ! जीवे कांक्षामोहनीय कर्म कर्ये छे?" दाट अर्थना निर्णय माटे छे. [ 'पगइ ति ] प्रकृति एटले कर्मना भेदो, ए चोथा उद्देशकनो विषय छे. 'हे भगवन् ! कर्मनी प्रकृतिओ केटली छे ?' इत्यादि अर्थवाळो आ-चोथो उद्देशो छे. [ 'पुढवीओ' त्ति] रत्नप्रभा वगेरे पृथ्वीओ पांचमां उद्देशकमां कहेवानी छे; 'हे भगवन् ! केटली पृथ्वीओ के ? इत्यादि एनं सत्र छे. जावंते' त्ति ] 'यावत्' शब्दथी उपलक्षित छट्ठो उद्देशो छे अने 'हे भगवन् ! जेटला अवकाशांतरथी सूर्य' इत्यादि एन सूत्र' छे. [ 'नेरइए' त्ति नैरयिक शब्दना चिन्हवाळो सातमो उद्देशो छे अने 'हे भगवन् ! नैरयिक निरयमां उत्पन्न थतो' इत्यादि तेनुं सूत्र छे. ['बाले' त्ति] बाल' शब्दनी निशानीवाळो ए आठमो उद्देशो 'हे भगवन् ! एकान्त बाल मनुष्य' इत्यादि सूत्रवाळो छे. [ 'गुरुए' ये त्ति] नवमो उद्देशो 'गुरुक' विषयवाळो छे अने 'हे भगवन् !जीवो भारेपणुं केवी रीते पामे छे ?' इत्यादि एजेंसूत्र छे. [ 'चलणाओ' ति] अहिं बहुवचन मूकवाथी 'चलन' वगेरे दशमा उद्देशाना अर्थो छे अने तेनुं सूत्र आ प्रमाणे छे:--'हे भगवन् ! अन्य मतवाळा आप्रमाणे कहे छे के:--चालतुं ए चाल्यु नथी' इत्यादि. ए प्रमाणे प्रथम शतकनी उद्देशोनी संग्रहणी गाथानो अर्थ छे.
१४. तदेवं शास्त्रोदेशे कृतमङ्गलादिकृत्योऽपि प्रथमशतस्यादौ विशेषतो मङ्गलमाह:-'णमो सुअस्स'त्ति नमस्कारोऽस्तु श्रुताय द्वादशाङ्गीरूपाऽहत्प्रवचनाय. . १४. ए प्रमाणे शास्त्रना उद्देशमां मंगल वगेरे कार्यों को छे तो पण प्रथम शतकनी शरुआतमा विशेषप्रकारे मंगल कहे छ:--'णमो सुअस्स'त्ति] भुतनमस्कारः श्रुतने नमस्कार हो. श्रुतने द्वादशांगीरूप अर्हत्प्रवचनने-नमस्कार थाओ.
१. 'रायगिह' एप्रमाणे लुप्त सप्तम्यन्त होवाथी 'राजगृहनगरने विष' एप्रमाणे अर्थ कर्यो छेः-श्री अभयदेव. २. 'च' शब्द समुच्चय अर्थमा छे:श्री अभयदेव.
१. समवायानसूत्रगतो द्वादशाङ्गयाः परिचयः संक्षिप्यात्र उदृतः, स चैवम्:आचारांगः-आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइअ-ठाण-गमण-चंकमण-पमाण-जोग-झुंजण-भासा-समिति-गुत्ति-सेज्जो-वहि
भत्त-पाण-उग्गम-उप्पाय-एसणा-विसोहि-सुद्धासुद्धग्गहण-वय-णियम-तवो-वहाणसुपसत्थमाहिज्जइ. xxx xxx पढमे
अंगे दो सुअक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासी उद्देसणकाला, पंचासी समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साई. सूत्रकृतः-सूअगडे णं ससमया सूइजंति, परसमया सूइज्जति, स-परसमया सूइज्जति, जीवा सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति, लोगे सूइजंति,
अलोगे सूइज्जति, लोगालोगे सूइजंति; सूअगडे णं जीवाजीवे पुण्णपावासवसंवरनिज्जरणबंधमुक्खावसाणा पयत्था सूइजंति. x x x x x x x असीइअस्स किरिआवाइअसयस्स, चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तहीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइअवाईणं-तिह तेसद्वाणं अण्णदिद्वियसयाणं छुढं किच्चा ससमए ठाविजंति. x x x x दोचे अंगे दो सुअक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तेत्तीसं उद्देसणकाला,
तेत्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पदसहस्साई. स्थानांग:-ठाणे णं ससमया ठाविनंति. परसमया ठाविनंति, ससमयपरसमया ठाविनंति, जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविति, जीवाजीवा
ठाविजंति, लोगा, अलोगा, लोगालोगा वा ठाविजंति. xxx x x तइए अंगे पण सुअक्खंधे दस अज्झयणा, एकवीसं
उद्देसणकाला, एकवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरि पदसहस्साई. समवायांगः-समवाए णं ससमया सूइजति, परसमया सूइज्जति, ससमय-परसमया सूइज्जति, समवाए णं एकाइयाणं एगठाणं एगुत्तरिय परिखुद्दीए दुवालसंग
स्स य गणिपिडगस्स पावग्गे समणुगाइजइ. x x x x x x चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे, एगे सुअक्खंधे, एगे उद्देसणकाले
एगे समुद्देसणकाले, एगे चउयाले पदसहस्से. व्याख्याप्रज्ञप्तिः-(भगवती)-विआहे णं ससमया विआहिज्जति, परसमया विआहिनंति.ससमय-परसमया विआहिजंति, जीवा विआहिज्जति, अजीवा
विआहिनंति, जीवाजीवा विआहिजंति लोगे विआहिजइ, अलोगे विआहिजइ, लोगालोगे विआहिजइ, विआहे णं नाणाविह सुरनरिंदरायरिसि विविहसंसदअपुच्छिआणं जिणेणं वित्थरेण भासिआणं दव-गुण-खित्त-काल-पजव-पदेस-परिणाम-जहत्थिअभावअणुगम-निक्खेवणय-प्पमाणसुनिउणोवकमविविहप्पकारपगडपयासिआणं लोगालोगपयासिआणं, संसारसमुदरुंदउत्तरणसमत्थाणं, सुरवइसंपूजिआणं भविअ. जणपयहिअयाभिनंदिआणं, तमरयविद्धसणाणं, सुदिदीवंभूअईहामतिबुद्धिवद्धमाणाणे छत्तीससहस्समणूणयाणं वागरणाणं दसणाओ, सुअत्थबहुविहप्पगारा सीसहिअत्था गुणहत्था.xxxxx पंचमे अंगे एगे सुअक्खंध, एगे साइरगे अज्झयणसये, दस
उद्देसगसहस्साई, दस समुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साई, चउरासीइं पयसहस्साई. ज्ञाताधर्मकथाः--णायाधम्मकहासु णं णायाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआई, वणखंडा. रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाई, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ,
इहलोइअ-परलोइअइड्डिविसेसा, भोगपरिचाया, पवजाओ, सुअपरिग्गहा, तबोवहाणाई परियागा; संलेहणाओ, भत्तपथक्खाणाई, २ भ• सू०
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