Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
परिष्ठापन करने योग्य स्थण्डिलभूमि के कुछ संकेत शास्त्रकार ने दिए हैं, शेष बातें साधक के विवेक पर छोड़ दी हैं। 'अप्पंडे' आदि में अप्प' शब्द अभाव का वाचक है। परिष्ठापन योग्य स्थान की भली-भाँति देखभाल और रजोहरण से यतनापूर्वक सफाई के लिए यहाँ प्रतिलेखन और प्रमार्जन इन दो शब्दों का दो-दो बार प्रयोग किया गया है। वृत्तिकार ने इन दोनों पदों के सात भंग बताए हैं
(१) प्रतिलेखन किया हो, प्रमार्जन नहीं। (२) प्रमार्जन किया हो, प्रतिलेखन नहीं। (३) प्रतिलेखन, प्रमार्जन दोनों न किये हों। (४) दुष्प्रतिलेखित और दुष्प्रमार्जित हो। (५) दुष्प्रतिलेखित और सुप्रमार्जित हो। (६) सुप्रतिलेखित और दुष्प्रमार्जित हो। (७) सुप्रतिलेखित और सुप्रमार्जित हो।
इनमें से सातवाँ भंग ग्राह्य है। सबीज अन्न-ग्रहण की एषणा
३२५. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावती जाव २ पविढे समाणे से ज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा कसिणाओ सासियाओ अविदलकडाओ अतिरिच्छच्छिण्णाओ अव्वोच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडिं अणभिक्कंताभजित पेहाए अफासुयं अणेसणिजं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा।
से भिक्खू वा २ जाव' पविढे समाणे से ज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा अकसिणाओ आसासियाओ विदलकडाओ तिरिच्छच्छिण्णाओ वोच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडि अभिक्कंतभज्जिय पेहाए फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।
३२६.से भिक्खूवा २ जाव' समाणे से जंपुण जाणेज्जा पिहुयं वा बहुरज वा भुज्जियं १. आचा० टीका पत्रांक ३२१-३२२ के आधार पर। २. यहाँ जाव शब्द के अन्तर्गत सू० ३२४ के अनुसार शेष पाठ 'गहावइ कुलं पिंडवाय पडियाए अणु।'
तक समझना चाहिए। ३. चूर्णिकार ने 'ओसहीयो' की व्याख्या की है-'ओसहीयो सचित्ताओ पडिपुन्नाओ अखंडिताओ सस्सियाओ परोहणसमत्थओ'- अर्थात् औषधियाँ (बीज वाले अनाज) जो सचित्त, प्रतिपूर्ण व अखण्डित हों। शस्य
हों यानी-प्ररोहण में -उगने में समर्थ हों। ४. अणभिक्कंता भंज्जिता - इन दो पदों का अर्थ चूर्णिकार ने किया है- अणभिकंता जीवेडिं
जीवों से च्युत न हों, अभज्जिता मीसजीवा चेव-भुंजी हुई न हों अथवा अल्प भुंजी हुई हों, वे मिश्रजीवी होती हैं। एत्तो विवरीता कप्पणिज्जा अव्वादेणं-इसके विपरीत अपवाद रूप से कल्पनीय है। ५. यहाँ भी जाव शब्द के अन्तर्गत शेष सारा पाठ सू० ३२४ के अनुसार समझ लें। ६. यहाँ जाव शब्द के अन्तर्गत सूत्र ३२४ के अनुसार शेष सारा पाठ समझें। ७. पिहुयं आदि शब्दों का अर्थ चूर्णिकार ने इस प्रकार किया है-'पिहुगा सालिबीहीणं,बहुरया जवाणं