Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० १६ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् भागे दीयते नित्यम् अपार्द्धभागो दीयते, तथाप्रकाराणि कुलानि नित्यानि नित्यमुमाणंति (प्रवेशः) नो भक्तार्थ नो पानार्थ वा प्रविशेत् निष्क्रामेद् वा इति । ॥ सू० १६॥ ___टोका-मर्मप्रकाशिका-अथ विशुद्धिकोटिक माहारजातमधिकृत्य विशेष वक्तुकामआह'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसितुकामे'-इत्यादि । स पूर्वोक्तो भादभिक्षुकः साधुर्वा, भिक्षुकी साध्वी वा गृहपतिकुलं गृहस्थगृहं पिण्डपात प्रतिज्ञया भिक्षालाभेच्छया प्रवेष्टुकामः प्रवेष्टुमिच्छुः सन् ‘से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा' स भावभिक्षुकः पुनरिति वाक्यालंकारे यानि कुलानि पुनरेवं भूतानि जानीयात्-अवगच्छेत, तानि यथा-'इमेसु खलु कुछेसु निइए पिंडे दिज्जइ' एषु खलु कुलेषु नित्यम् प्रतिदिनम् पिण्डः पोषरूपो ग्रासः दीयते, एवम् 'अग्गपिंडे दिज्जइ' अग्रपिण्ड:-भिक्षार्थ शाल्योदनादेः प्रथमं निष्काश्य व्यवस्थाप्यमानोंऽशः अग्रपिण्डरूपो दीयते, एवम्, 'नियए भाए दिज्जई' नित्यम् नियतरूपेण भागोऽर्धपोषरूपोऽशो दीयते, एवम् 'नियए अवड्डमाए दिज्जइ' नित्यम् अपार्द्धभागः पोष चतुर्थभागरूपोंऽशो दीयते इत्येवं रूपेण यदि तानि कुलानि स साधु
टीकार्थ-अब प्रसंगवश विशुद्ध कोटिक आहार जात को हो उद्देश करके कुछ विशेषता बतलाते हैं-'से वह 'भिक्खू वा भिक्खुणी वा' भाव साधु या भाव साध्वी 'गाहावइ कुलं' गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में 'पिंडवायपडियाए' पिण्डपात की प्रतिज्ञा से भीक्षालाभ की आशा से 'पविसितुकामे प्रवेश करने की इच्छा वाले वे साधु या भाव साध्वी 'जाइं कुलाई' जिम कुलो-घरों को 'जाणिज्जा' ऐसा जान ले कि 'इमेसु खलु कुलेख' इन घरों में णितिए पिंडे' नित्यप्रतिदिन पिण्ड भिक्षा 'दिज्जइ' दिये जाते हैं और 'नितिए अग्गपिंडे' नित्यप्रतिदिन अग्रपिण्ड भिक्षा के लिये पहले ही भात वगैरह में से निकाल कर अलग रक्खा हुआ चावल दाल बगैरह का भाग 'दिज्जइ' दिये जाते हैं इसी तरह 'नितिए भाए' नित्यदेने-के भाग 'दिज्जई' दिये जाते है 'नितिए' नित्य-'अवड. भाए दिज्जई' अपार्द्धभाग-नियत रूप से ही आधा पोष रूप भाग दिये जाते हैं હવે પ્રસંગવશાત્ વિશુદ્ધ પ્રકારના માહાર જાતને જ ઉદ્દેશીને કંઈક વિશેષતા બતાવે છે
- से भिखू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वोत साधु मने साथी 'गाहावइकुलं' स्य श्रावना घरमा 'पिंडवायपडियाए' मिक्षा भगवानी ४२४ाथी पविसितुकामे' प्रवेश ३२पानी ४२छाथी ते साधु साकी ‘से जाई पुणकुलाई जाणेज्जा' घशन मेवाणे, 'इमेसु खलु कुलेसु' २॥ घमा 'णितिए' ४२२०१ 'पिडेदिज्जइ' (मक्षा ५ माटे पोथी જ ભાત વિગેરેમાંથી જુદા કહાડીને જુદા રાખેલ ભાત વિગેરે આપવામાં આવે છે. તથા 'णियए' ४२२।२४ 'भाए दिज्जइ' मा सानियतपणाथी २५वामा मावे . 'णितिए अवट्ठभागे दिज्जइ' ४२२।०४ पोषन याया मा३५ 2५ 2५iwi आवे छे. तो 'तहप्पगाराइं कुलाई' तेव। ५२ना घरामा ‘णितियाई' नित्य हानशी पाथी तथा
श्री मायारागसूत्र :४