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शैशव
[७ · एक्सप्रेस गाड़ी में बैठता हूं पर उन दिनों अगर पैसेञ्जर गाड़ी
का किराया डाकगाड़ी से अधिक होता तो अधिक किराया देकर पैसेञ्जर गाड़ी में बैठता जिससे बैठने का अधिक सुख मिलता।
शैशव के भोलेपन के कुछ और संस्मरण हैं जो इतने विनोदी नहीं हैं। पिताजी के कथनानुसार शैशव में मैं बहुत ध्यानी था । ___ मकान के किसी कोने में ध्यानी की तरह आसन लगाकर मैं घंटों
बैठा करता था । क्या सोचता था यह तो कुछ याद नहीं है, यह केवल एक प्रकार की नकल ही हो सकती है । जैन-मन्दिर में लोगों को सामायिक करते देखकर मैंने उसकी नकल करना सीख लिया होगा।
माताजी के देहान्त के समय के चित्र मेरे सामने अभी भी झलते हैं । मत्य के पहिले वे कई महिने बीमार रहीं थीं । पर एक दिन मैंने देखा कि वे उठ बैठीं । मेरी बुआ-जो बीमारी में सहायता पहुँचाने आई थी --ने उनका सिर अच्छी तरह धोया और उनने भोजन भी किया । उस दिन मैं बहुत खुश हुआ। पर दूसरे दिन सुबह दतान करते समय उनके दाँत बँध गये। पिताजी माँ को पुकारते थे । दाँतों से दबी हुई दतान को खींचने की कोशिश करते थे । मैं पास में खड़ा खड़ा आश्चर्य से देखता था कि यह सब क्या हो रहा है ?
माँ को गर्भ था और छः महीने का गर्भ शायद उसी दिन गिरा था । वह बच्चा कुछ समय जीकर मर गया था । रंग कुछ ललाई लिये हुए था, मरने से अकड़ गया था, इस प्रकार वह